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सम्पन्न भाईयों के पास जाता है तो आप अपने व्यवहार को खुद पहचानिए तथा उसे अपने स्नेह वात्सल्यपूर्ण व्यवहार से सम्पन्नता की राह पर डालकर, समाजोद्धार की सीढ़ी पर चढ़ें।
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4. आपसी सहयोग का आदान-प्रदान समाज में विविध प्रकार की शक्ति वाले लोग हैं। जैसे कुछ श्रम कर सकते हैं-कुछ धन दे सकते हैं, कुछ विद्यावान हैं, कुछ बलशाली है आदि परंतु पारस्परिक सहयोग न होने के कारण, ये सब शक्तियां, अलग-थलग रहकर कुठित हो जाती हैं। अपने ही तुच्छ स्वार्थों में खो जाती हैं। यही सब शक्तियां, एक साथ, एक मत से, आपसी सहयोग द्वारा मिलकर कार्य करें, तो समाज पर परेशानी आने से पहले ही समाज की एकता व सहयोग व एकमत विचार, उसे दूर कर समाजोन्नति में सहयोग बनेगा।
5. योग्य को योग्य काम में लगाना हमारे समाज में सभी प्रकार के योग्य सदस्य, एक से बढ़कर एक बैठे हैं। उनको यदि उनकी योग्यता के अनुसार पदों-योग्य व्यवस्थाओं पर तथा योग्य कार्यों में नियुक्त करें तो सामाजिक व्यवस्था व सुख-शांति, अच्छी तरह से बनी रहेगी। इसी प्रकार हमें नारी की योग्यता को भी प्रयोग में लाना होगा। तभी समाज उन्नति कर पाएगा।
6. देश-काल-परिस्थिति देखकर, हितकर सुधार लाने का शुभ संकल्प लेना समय के साथ-साथ ज़माना बदल रहा है। यदि जमाने के साथ-साथ समाज नहीं बदला तो जमाने की चाल उसे बदल देगी। इसलिए अपनी इच्छा से ही, देश-काल-परिस्थिति देखकर, समाज के हित व उत्थान के लिए सामाजिक रूढ़िगत प्रथाओं में परिवर्तन लाना होगा। एक रोगी भी सोता है तथा एक थका व्यक्ति भी सोता है। रोगी व्यक्ति गूढ़ निद्रा में सो नहीं सकता, परेशानी में लेटा है। जबकि थका व्यक्ति थकावट के कारण गहरी नींद में सोने के बाद जब उठता है तो पूर्णतः ताजगी अनुभव करता है। इसलिए अब समय आ गया है कि समाज के कार्यों में देश-काल-परिस्थिति देखकर ही हम शुभ कार्य करें।
2. सामाजिक उत्थान में बाल- युवा वर्ग का सहयोग एवं उनमें धार्मिक संस्कारों का बीजारोपण :- गुरु वल्लभ के प्रवचनांशों में बाल एवं युवा वर्ग के लिए, शिक्षात्मक धार्मिक संस्कारों में हास, गलत संस्कारों के कारण चारित्र बल में गिरावट आदि के अंश भी शामिल होते थे, उनके भावों को मैंने एक अष्टक रूप में पुरोया है :
वर्तमान में बाल युवा वर्ग की पतन स्थिति :- वर्तमान भौतिकतावादी युग में, समस्त मानव समाज के संस्कारों का हास हुआ है। छल-कपट, प्रपंच-बेईमानी, असत्यवादिता, स्वार्थवश हिंसाएं, आदि कुसंस्कारों ने पूरे मानव समाज को पूर्णतः अपने आगोश में ले लिया है। आपस में मानवीय भावनाएं समाप्ति के कगार पर खड़ी होकर वर्तमान समाज का मज़ाक उड़ा रही हैं। जबकि धर्म आदि की महिमा, उनके नियम संस्कार आदि पुस्तकों में ही लिखे पड़े हैं। फुर्सत किसे है - स्वाध्याय करने का वक्त निकाले ? उन्हें पढ़ कर तो देखे ? हमारे पूर्वजों का दिया गया संदेश भी, “सादा जीवन उच्च विचार" आज के इस भौतिकतावादी युग में खो सा गया है। इस भौतिकतावादी चकाचौंध में प्रत्येक सामाजिक प्राणी, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में है अथकार के गर्त में खोता जा रहा है। स्वार्थ, दुराग्रह, असत्यता, संकीर्णता, भ्रष्टाचार आदि नीच प्रवृत्तियां हमारे अन्दर पूर्णतः हावी हो चुकी हैं।
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बंद करें अब केवल चर्चाएं, कथनी-करनी को मिल कर करें। कर्म कलश में भर नीर भाव के आओ जिनवर का अभिषेक करें।। 1 ।। हर दिन की तरह आज का दिन भी यूं ही अर्थहीन बातों में ना बेकार करें। प्रभु क्षमा करें- इतनी सी करुणा करें-आत्मशक्ति का मुझ में पूर्ण संचार करें ।। 2 ।। दो दिन के इस जीवन में यदि हो सके कुछ ना कुछ ऐसा करने की शक्ति प्रदान करें।
भटके इन बाल-युवा वर्ग में धर्म संस्कारों का पूर्णतः हम संचार करें ।। 3 ।। तभी निखरेगा इस समाज का रूप तभी उद्यान में सुखशांति के फूल खिलेंगे।
यही सपना संजोया था बड़ोदा के बालक ने संयम से, अनेक फूल धर्म के खिला डाले।। 4 ।।
आज के बाल-युवा वर्ग में सूर्य बन छा गए, ज्ञान की किरणों से स्नान है करा डाला। वल्लभ उनमें जगायी चेतना धार्मिक संस्कारों से, अमृत पान करा डाला।। 5 ।।
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विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका
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