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'चलो श्री जिन मन्दिर चलें' प्रतियोगिता
Imat.निटदिर
गुरुंवर विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. की आयु 84 वर्ष की थी। इन्हीं 84 वर्षों के निमित्त प.पू. गच्छाधिपति जी की सद्प्रेरणा एवं शुभ आशीर्वाद से 84 दिन के लिए वीतराग परमात्मा के मन्दिर में जा कर पूजा सेवा करना था। अवश्यक दिनों के लिए छूट रखी गई थी। इस प्रतियोगिता का मुख्य उद्देश्य था कि जैन परिवार परमात्मा की पूजा, सेवा, जागृति की ओर अग्रसर बने और परमात्मा की पूजा क्यों और कैसे करना इस विधि विधान को समझें। श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. ने अपनी एक रचना में वर्णन किया कि
"तन, मन, धन, सुख सम्पत्त करनी,
प्रभु पूजा है खरी। मिटे जन्म मरण का फेर,
प्रभु की पूजा है खरी।" अर्थात् परमात्मा की सेवा पूजा करने से लौकिक और पारलौकिक एवं भौतिक और आध्यात्मिक सुख प्राप्त होते हैं और जीव संसार में सभी प्रकार के सुख भोगता हुआ भव भ्रमण का नाश करके मोक्ष पद को प्राप्त कर लेता है। पूजा करने वाला साधक पूज्य के समान ही बन जाता है।
इस प्रतियोगिता का दूसरा उद्देश्य था पू.पू. गुरुवर विजय वल्लभ का नाम जब मुख पर आयेगा तो उनके द्वारा किये गये उपकार याद आयेंगे। उनके बताए हुए आदर्श स्मृति में आयेंगे और उन को अपनाने के लिए मार्गदर्शन मिलेगा। इस प्रतियोगिता के द्वारा दोनों ही उद्देश्य सफल हुए मन्दिरों में पूजा सेवा करने वाले भक्तों के आने में बढ़ोत्तरी हुई और नवयुवक वर्ग को गुरुवर विजय वल्लभ के जीवन आदर्शों को जानने की उत्सुकता जागृत गई।
___ इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले महानुभावों के नामों में से लक्की ड्रा द्वारा पुरस्कार प्राप्त करने वाले का नाम निकाला जायेगा और इसका पारितोषिक वितरण समापन समारोह के अवसर पर किया जायेगा।
विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका
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