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वल्लभ तेरे चरणों में अर्पण हैं भाव
सुमंगल शिशु साध्वी सौम्यप्रभा श्री “हे ! महितल के श्रृंगार, तुम्हें शत-शत वन्दन, हे ! जन-जीवन के तारणहार, तुम्हें शत-शत वन्दन।
हे ! भक्तों के करतार, तुम्हें शत-शत वन्दन। हे ! मेरी आस्था के आलोक, तुम्हें शत-शत वन्दन ।।
(2) युगों-युगों तक आपका शताब्दी वर्ष हम मनाते रहें 50वें स्वर्गारोहण वर्ष पर गुणगान हम गाते रहें यही कामना है तहे दिल से, हे मेरे गुरु वल्लभ आप हमारी श्रद्धा भक्ति को सदा मजबूत बनाते रहें।।
(3) आत्मार्थी बने बिना कल्याण नहीं हो सकता, विद्यार्थी बने बिना विद्वान नहीं हो सकता।
सच पूछो तो एक बार बता दूं अब, वल्लभ तेरे आये बिना, समाज का उत्थान नहीं हो सकता।।
धार में डूबने से वह बच गया, जिसको नाव का सहारा मिल गया।
गर्त में गिरने से वह बच गया, जिसको वृक्ष का सहारा मिल गया।
बीहड़ में भटकने से वह बच गया, जिसको गुरु वल्लभ का सहारा मिल गया।।
(5)
पानी बन तुझे आना होगा, वैर विरोध की आग बुझाने, पिता बन तुझे आना होगा, अपने पुत्रों को समझाने।
भावों का गुलदस्ता लिये, हम इन्तजार कर रहे हैं। स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी पर, तुझे आना होगा घर अपना सजाने।
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विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका
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