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हम बड़े गौरव से अपने आपको भगवान महावीर का अनुयायी कहते हैं। ऐसे ही युगवीर श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. के 50वें स्वर्गारोहण वर्ष के सुअवसर पर स्मारिका का प्रकाशन एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। युगपुरुष अपने पार्थिव शरीर से हमारे बीच में नहीं है परन्तु उनके समाज पर किये गये उपकार, उनके आदर्श, उनके अमर संदेश, उनके नाम के साथ अमर ज्योति, निरन्तर हमें ज्ञान के साथ जीवन का मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हैं। प्रस्तुत स्मारिका अज्ञान तिमिर तरणि, कलिकाल कल्पतरु, पंजाब केसरी, युगवीर, जैनाचार्य की महान् सेवाओं के प्रति एक विनम्र श्रद्धांजलि है।
महापुरुष कुछ लेने के लिए समाज को नहीं देते, वे तो निःस्वार्थ भाव के साथ “सव्वी जीव करूं जिनशासन रसि" के उद्देश्य को सामने रखकर, समाज के कल्याण के लिए कार्य करते हैं। समाज ऐसे महापुरुषों के उपकारों से कभी भी उऋण नहीं हो सकता है फिर भी इस स्मारिका के माध्यम से इस महापुरुष के श्री चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करता है। यही गुरु ऋण मुक्त होने का छोटा सा प्रयास है।
___स्मारिका में प्रमुख रूप से वर्तमान पट्टधर गच्छाधिपति श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज की शुभ सप्रेरणा से “अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति” द्वारा स्वर्गारोहण वर्ष भर में किये गये विविध मंगलमय कार्यक्रमों का विवरण है। इसी के साथ प.पू. गुरुवर के महान् व्यक्तित्व एवं कृतित्व का निरूपण करते विद्वद्जनों के लेख हैं, साथ ही जैन साहित्य और दर्शन के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण शोध पर निबन्ध भी प्रस्तुत हैं।
स्मारिका का लक्ष्य प.पू. गुरुदेव के संदेशों को प्रसारित करते हुए उनके आदर्शों के प्रति समाज को जागरूक करना
है,
उत्तम जन गुणगान से, उत्तम गुण विकसन्त।
उत्तम निज सम्पद मिले, होवे भव का अंत। अर्थात् महापुरुषों का गुणगान करने से अपने अन्तरात्मा में उत्तम गुणों का विकास होता है और निज सम्पदा, आत्म सम्पदा उपलब्धि एवं आत्मानुभूति प्राप्त होती है, जिससे भव भ्रमण का अंत होता है और मोक्ष पद की प्राप्ति होती है। पूज्य गुरुदेव का नाम घर-घर में गूंजे “इस नाम में ऐसी बरकत है जो चाहता हूँ सो पाता हूँ" उनके बताए हुए मार्ग के अनुसार हम अपने परम लक्ष्य मोक्ष की ओर अग्रसर बनें, इन्हीं भावनाओं के साथ इस "स्मारिका" का प्रकाशन हो रहा है।
स्मारिका प्रकाशन के क्रम में हमारे श्रमण, श्रमणीवृंद एवं सहयोगी लेखक, धर्मप्रेमी बन्धुओं से पर्याप्त सामग्री उपलब्ध हुई है, बहुत सी सामग्रियां कुछ तो समय के पश्चात् आने के कारण तथा कुछ स्थानाभाव के कारण हम प्रकाशित नहीं कर पाये हैं, अतः उन अप्रकाशित सामग्रियों के लेखकों से क्षमाप्रार्थी हैं।
स्मारिका की समस्त सामग्रियां उनके प्रणेताओं के स्वतंत्र विचारों की अभिव्यक्ति हैं। सम्पादक अथवा प्रकाशक का उन विचारों के प्रति कोई आग्रह नहीं है। हमें इस प्रयास में जिन महानुभावों का सहयोग प्राप्त हुआ है। हम उनके प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं।
त्रुटि के लिए क्षमाप्रार्थी
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