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प्रातः की धर्मसभा में गुरुदेव का प्रवचन : “भाग्यशालियो, एक साल से जिस की प्रतीक्षा कर रहे थे वह पावन घड़ी आ गई है। गुरुवर विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष में सभी ने अपने सामर्थ्य के अनुसार तन-मन-धन से गुरु गुणगान में भाग लिया। भारतवर्ष -आर्य संस्कृति गुणानुरागी बनाती है, गुणानुरागी अवसर आने पर चूकता नहीं है। गुरुवर वल्लभ ने हमको क्या नहीं दिया यह सोचने का है। हर एक गुरु भक्त में, गुरु ऋण चुकाने का भाव था-भाषण द्वारा, कविता द्वारा, भजन द्वारा या फिर विभिन्न कार्यों के द्वारा गुणानुवाद के लिये एक व्रत के रूप में लिया। गुरुवर एक ऐसे संत हैं, जो विश्व के अन्दर प्रसिद्ध हैं। उनकी प्रतिमा लन्दन में भी विराजमान है। छोटे संघों ने अपने-अपने रूप में गुणानुवाद किया। 50वीं स्वर्गारोहण वर्ष की पूर्णाहुति
दोपहर प्रीतिभोज लाभ प्राप्तकर्ता-श्री फग्गू मल कश्मीरी लाल जैन बरड़ परिवार के लिये हम एकत्रित हुए हैं। गुरुवर वल्लभ के चरित्र की उनके विरोधियों ने भी प्रशंसा की। पंजाब में राग-रंग का जोर है, गुरुवर पंजाब में विचरे परंतु उनके चरित्र पर कोई अंगुली नहीं उठा सका। चरित्रवान आत्मा का गुणानुवाद सम्यक् ज्ञान और विरति धर्म की ओर ले जाता है। जिसका गुण गाते हैं उसका कार्य भी देखा जाता है। इस महापुरुष ने संयम लेकर 84 वर्ष की आयु पाकर समाजोद्धार एवं आगम उद्धार किया और प्रभु भक्ति में लीन रहे। आखिरी समय के आखिरी दिनों में भी, यहां तक कि बीमारी में भी त्याग की वृत्ति इतनी थी कि 5-6 द्रव्यों का ही प्रयोग करते थे।
गुरु वल्लभ के पास दिन को व्याख्यान का समय छोड़ कर बहनें नहीं आ | सकती थी। ज्योतिष और मंत्र साधना का प्रयोग करने वाले को अपनी आज्ञा और आदेश देकर किनारे करते थे।
सायं का प्रीतिभोज लाभ प्राप्तकर्ता-श्री माया राम माणक चन्द जैन परिवार आप सबका साथ चरित्र पालन के लिये है। मनुष्य जीवन दुर्लभ है। आप लोगों को मनुष्य नहीं, मानव नहीं, श्रावक बनने का है। सम्यक ज्ञान आयेगा तब देश विरति धर्म आयेगा। गुरुदेव की अर्द्धशताब्दी मनाने का इतना ही अर्थ है कि जीवन में त्याग मार्ग आये, विरति धर्म आये, प्रतिक्रमण करने का भाव जागृत हो, यही गुरु चरणों में सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
गुरुदेव के प्रवचन के पश्चात् विविध मंगलमय कार्यक्रम के अंतर्गत युवा वर्ग के प्रथम चरण के विजेता छः प्रतियोगियों का भाषण प्रारम्भ हुआ। जिनमें प्रथम स्थान : सुश्री निशा जैन अम्बाला, द्वितीय स्थान : श्रीमति वीनू जैन, लुधियाना तृतीय स्थान : श्री संजीव जैन दुग्गड़' लुधियाना ने प्राप्त किया।
इनको महासमिति की तरफ से सम्मान प्रतीक स्मृति चिन्ह के साथ क्रमश: 2100, 1500, 1100 रुपये की राशि भेंट की गई। इसी के साथ शेष तीन प्रतियोगियों में प्रोत्साहन पुरस्कार स्वरूप स्मृति चिन्ह के साथ क्रमश: 500 रुपये की राशि भेंट की गई। प्रोत्साहन पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रतियोगी क्रमशः कुमारी शीतल शर्मा लुधियाना, श्रीमति अर्चना जैन अम्बाला एवं प्रो. राजेन्द्र कुमार जैन नकोदर हैं।
(पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रतियोगियों के छाया चित्र पृष्ठ 134-135 पर प्रकाशित हैं।) अन्त में सुरेश जैन पाटनी के भजन के साथ सुबह की सभा का विसर्जन हुआ। भजन के मुख्य अंश थे ?
"बस आपकी कृपा से, सब काम हो रहा है।
करते हो तुम ऐ वल्लभ मेरा नाम हो रहा है।" दोपहर 2 बजे प.पू. गच्छाधिपति जी के मंगलाचरण के साथ धर्म सभा का शुभारम्भ हुआ। जिसमें सर्वप्रथम श्री विजय वल्लभ पब्लिक स्कूल की छात्राओं द्वारा सामूहिक गीत प्रस्तुत किया गया। विविध मंगलमय कार्यक्रमों के अन्तर्गत "चलो जिन मन्दिर चलें" प्रतियोगियों का लक्की ड्रा द्वारा विजेताओं के नाम निकाले गये। लक्की ड्रा निकालने वाले श्री आत्म-वल्लभ श्रमणोपासक गुरुकुल के विद्यार्थी थे। प्रत्येक शहर में प्रथम, द्वितीय, तृतीय आने वाले प्रतियोगियों को क्रमशः स्मृति चिन्ह के रूप में शील्ड, गुरुवर का फोटो भेंटस्वरूप प्रदान किया गया।
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