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रंगोली
सदियों से रंगोली बनाने की प्रथा चली आ रही है। रंगों के तालमेल से आकृति एवं कार्यों के अनुरूप चित्र में रंगों को भरा जाये, उसे 'रंगोली' कहते है। व्यक्ति या महापुरुष के द्वारा कर्म क्षेत्र में किये गये महान कार्यों को सजीव रूप देने के लिए तथा मानस पटल पर संस्मरणों को ताजा करने के लिए रंगों के द्वारा विभिन्न आकृति वाले चित्र बनाये जाते हैं। देश, काल, वातावरण में भूतकाल में महापुरुषों द्वारा किये गये अद्वितीय कार्यों को जगत के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए चित्रों में विभिन्न रंगों के माध्यम से जान डाली जाती है, चित्र इस प्रकार के बन जाते हैं कि मूक होकर भी किये गये कार्य एवं घटना का विस्तार के साथ वर्णन कर देते हैं।
ये चित्र देखने वाले को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। रंगों के इसी गुण का लाभ लेते हुए, इसके द्वारा आकृतियों का निर्माण किया जाता है ताकि प्रदर्शित घटना का सजीव वर्णन प्रस्तुत हो सके। प.पू. वर्तमान गच्छाधिपति जी ने गुरुवर विजय वल्लभ सूरि जी महाराज के जीवन चरित्र में से समाज के लिए किये गये अनन्य अद्वितीय उपकार आदि महत्त्वपूर्ण घटित घटनाओं को रंगोली के द्वारा प्रदर्शित किया है, जो गुरुदेव के महान कार्यों का वर्णन करते प्रतीत होते हैं। रंगोली के इन चित्रों का निर्माण प.पू. गच्छाधिपति जी ने स्वयं अपने हाथों से किया। चित्रों में इतनी सजीवता एवं आकर्षण है, कि देखते ही अतीत वर्तमान में परिवर्तित हो जाता है, समस्त घटनाएं ताजा बन कर आँखों के सामने आ जाती हैं।
रंगोली के द्वारा बनाए गए चित्रों को छाया चित्रों के माध्यम से प्रकाशित किया जा रहा है, ताकि जनसमुदाय, समाज एवं गुरुभक्त परम श्रद्धेय गुरुदेव के अनन्य उपकारों से अवगत हो सकें तथा उन महान आदशों को अपने जीवन में उतार कर मनुष्य जन्म का लक्ष्य प्राप्त कर सकें।
1. बड़ोदरा में आत्म गुरु का आवागमन एवं
वल्लभ गुरु का छगन के रुप में मिलन
2. वल्लभ गुरु की राधनपुर में दीक्षा
3. वल्लभ गुरु द्वारा स्थापित संस्था महावीर जैन विद्यालय, मुम्बई
4. मुम्बई में लाखों की तादाद में श्मशान यात्रा
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विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका
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