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________________ तिलक से आप देख सकते हैं कि मैं पक्का आस्तिक और मूर्तिपूजक बन गया हूँ। ऐसे लब्धि-सम्पन्न गुरु भगवंत को शत्-शत् नमन वंदन ! अपनी आप बीती इस प्रकार सुनाई। मैं एक कट्टर नास्तिक था। बड़े-बड़े विद्वानों, संतों महामण्डलेश्वरों आदि की सेवा में गया। मेरे एक भी प्रश्न का उत्तर किसी से भी ठीक न मिला। उनके भक्तों ने मुझे धक्के मार कर निकाल दिया। आचार्य भगवन् की सेवा में प्रश्न करने के लिए मैंने इस तरह पूरी तैयारी की, जैसे बड़ी कक्षा की वार्षिक परीक्षा हो। निर्धारित समय पर पहुँच गया, उनके दर्शन किए, नूरानी चेहरा देखा, उन्होंने भी मुझे भर आंखों से देखा। मुझे सारे प्रश्न भूल गये। उनके चरणों में आधा घण्टा बैठने के पश्चात् मैं घर आ गया। घर आकर सोचा यह कैसे हो गया ? आज तक मेरे प्रश्नों का उत्तर कोई नहीं दे सका। परन्तु यहाँ पर उनके दर्शन मात्र से ही अपने सारे प्रश्न भूल गया। यह कैसे हो गया ? सोचने पर इस नतीजे पर पहुँचा कि हमारे शास्त्रों में जो यह कहा है कि ऋषि-मुनियों, महान् तपस्वियों को ब्रह्म तेज की शक्ति पैदा हो जाती है। वो अपने ब्रह्म तेज की किरणों से जब आंख भरकर सामने वाले व्यक्ति को देखते हैं तो उसकी सारी शक्ति प्रभावित हो जाती है। जिन महात्माओं की तलाश में मैं चिरकाल से था, वो आज मुझे मिल गये और मेरा आधा नास्तिकपना वहीं पर समाप्त हो गया। प्रतिदिन आने से गुरु महाराज के उत्तर मिलने पर मैं पक्का आस्तिक बन गया हूं। मेरे माथे पर लगे हुये श्री वल्लभनिर्वाण कुंडलीगायन 5 3 ds|w-6WXq-4pa 2 I Kkq-k-cq-X 10 ea-jk-4 / 11 तर्ज़-छोड़ गये महावीर, मुझे आज अकेला छोड़ गये। मेरे श्री संघ के सिरताज, अब कहाँ सिधारे राज। मरुधर की आँखों के तारे, पंजाबियों के प्राण। भारत का था कल्पतरुवर, गुजर प्रकटयो भाण। मेरे। - 1 वल्लभ तेरा नाम अनुपम, जग वल्लभ कहलाया। लाखों मनुज का नायक था, यहाँ लाखों का दिल बहलाया। मेरे। - 2 वृद्ध आयु तक देव तेने, जिन धर्म की सेवा कीनी। श्रावक संघ के अभ्युदयहित, संस्थायें स्थापन कीनी। मेरे। - 3 कर्क लगन में चंद्र गुरु संग, गुरुवर स्वर्ग सिधारे। कन्या का रवि त्रीजे भवन में, दिव्य पराक्रम धारे। मेरे। - 4 शुक्र शनैश्चर चौथे भवन में, बुध भी साथ कहावे। मंगल राहु छट्टे भवन में, केतु बार में ठावे। मेरे। - 5 धर्म-भवन का स्वामी सुरगुरु, उच्च लगन में बैठा। चंद्र शुक्र निज घर के स्वामी, शनी उच्च बन बैठा। मेरे। -6 मंगल राहु रवि त्रीजे छट्टे, ये सब शुभ फलकारी। उच्च गति को प्राप्त करावे, ग्रह बल के अनुसारी। मेरे। -7 छोड़ हमें गुरु स्वर्ग के सुख में, तेरा जी ललचाया। आसो वदि दशमी की रात्रि, गुरुवर स्वर्ग सिधाया। मेरे। - 8 मंगलवारे पुष्य ऋषि के, प्रथम चरण में जावे। मुम्बई शहर की लाखों जनता, गुरुवर शोक मनावे। मेरे। -9 भाग्य हुआ कुछ अल्प हमारा, वल्लभ सूर्य गमाया। हस्ती श्री गुरुराज चरण में, सादर सीस झुकाया। मेरे। - 10 हस्तीमल कोठारी सादड़ी (मारवाड़) विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 177 NEducation.interidhornels Focal & Per total US ON wow.lanelibrarieto
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
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