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________________ 0000000000000000000000000000 - चरित्रनायक ने कमी न रखी। बहुत कुछ जी ने आत्मा राम जी म. को जहर देकर भावनगर जैसे स्थानों में श्री आत्मानन्द . विघ्न आया आखिर राधनपुर नगरे छगन मार दिया है। यह बात कोर्ट-कचहरियों में जैन सभा की स्थापना करके आगम सूत्रों • लाल की इच्छा फलीभूत हुई। आत्म गुरुवर भी चली गई। हमारे चरित्रनायक ने को प्रकाशित करने का भी पुरुषार्थ जी ने बड़े भावोल्लास से संयम पथ ऊपर धीरता- गम्भीरता-स्थिरता और सामथ्यता प्रशंसनीय है। अपने जीवन काल के अन्दर आरुढ़ बनाया। अपने प्रशिष्य मुनिराज से निर्विघ्नतया पार उतरे। अब पड़दादा से निर्विघ्नतया पार उतरे। अब पड़दादा सभी क्षेत्रों में अपना प्रभुत्व जमाया था। श्री हर्ष विजय जी म. के शिष्य की गुरु के भक्त और भूमि निरीक्षण करते हुए वक्तृत्व शक्ति गजब की थी। जैन, जैनेत्तर, उद्घोषणा की। नाम रखा विजय वल्लभ, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र आदि स्थानों मुस्लिम, सिक्ख गुरुदेव जी की वाणी सुनने हम जानते ही हैं कि वल्लभ का अर्थ में ज्ञान की ज्योत जलाई। बम्बई में महावीर में अपना परम सौभाग्य मानते थे, बम्बई सबका प्यारा, और हुआ भी ऐसे। गुरु का जैन विद्यालय, गुजरात में विद्यालय की में उसका ज्वलंत उदाहरण है। चौपाटी प्यारा और पड़दादा गुरु भी खुश। अब शाखा एवं गुरुकुल, राजस्थान में वरकाणा बम्बई में दस-दस हजार की मेदनी में ज्ञान-ध्यान में आगे बढ़ते हुए हमारे आदि स्थानों में गुरुकुलों की स्थापना गुरुदेव जी का व्याख्यान होता था। यह है चरित्रनायक ने कुशाग्र बुद्धि से आगमों का कराई। पंजाब, हरियाणा में स्कूल, कॉलेज हमारे चरित्रनायक की अलौकिक प्रतिभा। अध्ययन- अध्यापन कर लिया। गुरु श्री का उपदेश दिया। गुजरांवाला में श्री आज हम पूरे भारत वर्ष के अन्दर यह हर्ष विजय जी म. का स्वर्गगमन, पड़दादा आत्मानन्द जैन गुरुकुल की स्थापना की। विरल विभूति की अर्द्धशताब्दी मना रहे हैं। गुरु जी की छत्रछाया में गुरु वल्लभ का ऐसे कार्यों में वल्लभ गुरु जी का समय हमारे गुरुदेव जी के कार्यों को याद कर जीवन आगे बढ़ रहा है। आत्म गुरु जी व्यतीत हो रहा था। बीच-बीच में शरारती उनका हमारा हृदय गद्गद् हो जाता है। हम अपने प्रशिष्य की समय सूचकता कार्यशैली तत्त्वों का जिनशासन एवं जिनवाणी का गर्व अनुभव कर रहे हैं लेकिन ऐसे महान् देखते हुए बहुत ही प्रसन्नता के साथ कुछ प्रश्न उठाया जाता था। हमारे चरित्रनायक उपकारी गुरुवर की अर्द्धशताब्दी मनाते हुए मार्गदर्शन भी दे रहे थे। समझो कि भाविका आत्म गुरुवर की प्यारी धरती पर यह मुझे इतना तो कहना ही पड़ेगा हम किस अनुसार ही दे रहे थे। एक दिन का समय, देखते ही राजस्थान हो या गुजरात होवे, जगह पर खड़े हैं ? एकता-संगठन के आत्म गुरुवर जी ने अपने हृदय गत भावना सिंह की तरह गर्जन करते हुए पहुँच जाते सहारे या विभाजन के मार्ग पर खड़े हैं ? वल्लभ गुरु को कहा, “हे वल्लभ ! मेरी थे। कई तो नाम सुनते ही चुप हो जाते थे। यदि हम हमारा अहं-ममत्व पोंछते हुए मन . बात सुन ले। मैंने पंजाब में जिनमन्दिर एवं कभी-कभी राज दरबारों में शास्त्रार्थ होता को मनाते होंगे तब महापुरुष के गुणानुवाद . जिनोपासना के श्रद्धावनत् श्रावक तैयार था। मुंह तोड़ जवाब देकर जिनशासन की क्या हम सफलतया कर रहे है, क्या हम . किए, तुझे यह करने का है कि सरस्वती पताका लहराते थे। जब हिन्दुस्तान निष्फल में जा रहे है ? यह स्वयं को सोचने मन्दिरों की जगह-जगह पर स्थापना पाकिस्तान का विभाजन हुआ, अपनी का है। गुरुदेव जी सदा के लिए मोहमयी करवानी, ताकि उससे समाज के अन्दर कार्यकुशलता से जैन-जैनेतर को सुरक्षित नगरी मुम्बई भायखला में अपना विश्रान्ति • समाज का उत्थान होगा, बस मेरी यही स्थानों में पहुँचाया। तभी समाज ने पंजाब स्थान ले लिया हमारे लिए वह तीर्थ भूमि भावना है।" वल्लभ गुरुवर जी ने अपने केसरी की पदवी से विभूषित किया। तब से बन गई। वहाँ नतमस्तक होना हमारा मन-मस्तिष्क के अन्दर बैठा लिया। जीवन पंजाब केसरी विजय वल्लभ इस रूप में अनिवार्य बन जाता है, क्यूं ? गुरुदेव जी ने नैया आगे बढ़ रही है, आत्मगुरु का छोटी प्रसिद्ध हुए। हमारे ऊपर जो उपकार किया है, यही सी ही आयु ही बीमारी के अन्दर जीवन वल्लभ गुरुवर अपनी मेधावी हमारे नतमस्तक बनने का भाव होता है। दीपक बुझ गया, यानि स्वर्गवासी बने। उस शक्ति से काव्य रचना स्वरूपे स्तवन, यदि उनके बताये राह पर चलेंगे, तब समय वल्लभ गुरुवर जी को बहुत कष्ट सज्झाए, थुई, पूजा आदि बनाकर हिन्दी हमारा और तुम्हारा कल्याण होगा। आया। लांछन लगाया गया। वल्लभ विजय भाषित क्षेत्रों में बहुत भारी उपकार किया। इति शुभम् ०००००००००००००००००००००००० 30 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
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