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समारोह महासमिति' के कार्यकारी अध्यक्ष श्री सिकंदर लाल जी ने यात्रा का पूरा विवरण देते हुये उन तमाम व्यक्तियों एवं संस्थाओं का धन्यवाद किया और आभार माना, जिन्होंने इस यात्रा को सफल बनाने के लिये प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सहयोग किया। वल्लभ सेना के महामंत्री तथा विजय वल्लभ रथ यात्रा के संयोजक प्रो. श्री राजेन्द्र कुमार जैन का विजय वल्लभ रथ यात्रा के संचालन में सराहनीय योगदान रहा।
साध्वी पीयूषपूर्णा श्री जी ने अपने प्रवचन में गुरु विजय वल्लभ की जीवनी पर प्रकाश डाला। गुरु वल्लभ के अन्तिम हस्त दीक्षित मुनि परम पूज्य आचार्य श्री पद्म चन्द्र सूरीश्वर जी महाराज ने अपने सारगर्भित प्रवचन में धर्मसभा को सम्बोधित करते हुये फरमाया कि श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरि जी महाराज ने समय के अनुरूप विजय वल्लभ अर्द्धशताब्दी को महोत्सव रूप में मनाने के लिए गुरुवर के नाम को दशों दिशाओं में फैलाने के लिए उनके उपदेशों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए विजय वल्लभ रथयात्रा के रूप में एक बहुत ही सुन्दर एक अनुमोदनीय कार्य किया है। रत्नाकर मेरे मित्र जैसे हैं मुझे वडील का सम्मान देते हैं लेकिन चरित्र में मुझ से बहुत-बहुत ऊँचे चले गये हैं, उनका चरित्र उच्चतम कोटि का है। उच्च चरित्र से ही जैन धर्म की जाहो जहाली होगी, उनका पट्टधर बनना एक योग्य व्यक्ति को योग्य वस्तु का दिया जाना है। मेरे साथ उनका भ्रमण भी हुआ है चौमासा भी हमने इकट्ठा किया है। कई लोग कहते है कि वह आवेश में जल्दी आ जाते हैं। उन्हें ध्यान देना चाहिए वे आवेश में क्यों आते है ? जब कोई गलत बात होती है तभी वे आवेश में आते हैं। समाज को मीठी दवाई दी जाती रही इसीलिए समाज की दुर्दशा हो रही है। अब रत्नाकर ने आकर इस दुर्दशा को रोकने के लिए कड़वी दवाई दी लेकिन यह दवाई हितकारी है, जो इसे पीएगा उसका जन्म लेना सार्थक बन जायेगा। जैन समाज के पुण्योदय से ऐसा गुणवान चरित्रवान पट्टधर प्राप्त हुआ है सभी आचार्यों को और सभी समाज को उनका सम्मान करना चाहिए। रत्नाकर सूरि जिस बात को ठान लेते हैं उसको करने से नहीं चूकते। वे कभी गलत कर ही नहीं सकते इसलिए उनका कभी गलत नहीं होगा। रथयात्रा में आज पता चलता है कि गुरु वल्लभ के भक्त हर गली, हर कूचे में विराजमान हैं। आज जरूरत है वल्लभ सूरि के झण्डे तले एक हो जाओ, गुरु वल्लभ के उपदेशों को जीवन में उतारने की आवश्यक्ता है, जैन धर्म में त्यागी का मान-बहुमान होता है भोगिओं का नहीं। त्यागियों का मान-बहुमान परमात्मा का मान-बहुमान है इसलिए भूलकर भी त्यागी का अपमान मत करना।"
समारोह समाप्ति पर भक्तगण ढोलकी ताल पर झूमझूम कर नाचने लगे। इस प्रकार गुरुवर का गुणानुवाद करते हुये भव्यातिभव्य रथ यात्रा का समापन समारोह हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ जिनशासन की प्रभावना के लिए और गुरुवर के श्री चरणों में श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिये ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार प्रथम बार ऐसी भव्यातिभव्य गुरु विजय वल्लभ रथ यात्रा का आयोजन किया गया है और इसकी सफलता का सारा श्रेय श्री आत्म-वल्लभ-समुद्र-इन्द्रदिन्न के वर्तमान पट्टधर गच्छाधिपति कोंकण देश दीपक जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज को जाता है, जिन्होंने शुभ सद्प्रेरणा आशीर्वाद एवं निश्रा प्रदान करते हुये अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी रथ यात्रा समारोह महासमिति को मार्गदर्शन दिया।
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विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका
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