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प्रभु भक्ति
कबीर और वल्लभ सूरि ने ईश्वर-मिलन के लिए प्रेम पर बल दिया। गुरु वल्लभ ने प्रेम की महिमा में कहा :
जो मनुष्य प्रभु-भक्ति में मग्न हो जाता है, उसके हृदयाकाश में आनन्ददाता जिनेन्द्रप्रभु चन्द्रमा के समान शोभित हो जाते हैं। उसके भव-फन्द और कर्म-बन्धन टूट जाते हैं।
मुख शरद पूनम को चन्दा, भक्त चकोर मन होत अनन्दा।
- श्री आदिनाथ जिनस्तवन, वल्लभ काव्य सुधा : पृ. 17
कबीर कहते हैंपिंजर प्रेम प्रकासिया, जाग्या जोग अनन्त। संसा छूटा सुख भया, मिल्या पियारा कन्त।।
SARDARI LAL SHIKHAR CHAND JAIN
MURADABAD
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