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जबलमा
श्रीमद् विजा
KUTTA
स्वशिक्षक
श्रद्धा पुष्प
श्री सर्वज्ञ-पदाब्ज का रस पिया, प्रारम्भ में चाव से, आत्माराम पदाब्ज का फिर लिया, आस्वाद सद्भाव से, अर्हत्सक्ति लतावली पर रमा, जो है रसों से भरी,। श्रीमान् वल्लभ सूरि के हृदय ने, क्या मृग लीला धरी।। 1 ।।। कोष व्याकरणादि-चैत्य शिखरोपे, के लिये कजता। श्री जैनागम बाग में रम गुरु, उल्लासों भरा गूंजता, पा के मर्म पयोद नृत्य करता के का रसी, 'श्रीमान् वल्लभ सूरि के हृदय में, क्या मोर लीला बसी।। 2 ।।। वाणी वल्लभ मूर्ति वल्लभ, जिनेंद्रा राथ ना वल्लभा, श्रद्धा वल्लभ भक्ति वल्लभ, तथा है साधना वल्लभा, ऐसे वल्लभता-गुणावली तुम्हीं में भाग्य ने ला भरी, श्रीमान् वल्लभ सूरि वल्लभ तभी संज्ञा धरी है खरी।। 3 ।।। विद्यादान महान जो मुनि किया संसार में आपने, संतानार्थ नहीं कहीं पर, कभी वैसा किया बापने सारे भारत में न केवल अहो द्विपान्तरों में किया 'श्रीमान् वल्लभ सूरिः एक न किया सद्वान सारा दिया।।4।।। छोड़ा है घर आपने पर गुरु प्रासाद में खेलते, तो भी है श्रमणार्थ आप तप में तो श्रान्ति को झेलते. श्रीमद् वल्लभ सूरि साधुवर की क्या क्या प्रशंसा करे, जो थे श्रावक आज थे श्रमण हो सुरीशता भी धरे।। 5 ।।। श्रीमद् वल्लभ सूरि दिल के प्रकर की व्याख्यान की जो छटा, सो था दुग्ध घटानुपान जिस को पीता न कोई हृदा; जी का ध्यान बहा नहीं फिर रहा संदेह सारा घटा,
प.पू. साध्वी निर्मला श्री जी
विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका
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