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पश्चात् शंख के पास आकर बोले- इस प्रकार हमारी अवहेलना करना - क्या आपको शोभा देता है । भगवान् ' यह सुन उनसे कहा-शंख की अवहेलना मत करो । यह अवहेलनीय नहीं है । यह प्रियधर्मा और दृढ़धर्मा है । यह सुदृष्टि जागरिका में स्थित है ।
(८) सुलसा - राजगृह में प्रसेनजित नाम का राजा राज्य रथिक का नाम नाग था । सुलसा उसकी भार्या थी । नाग सुलसा से इन्द्र की आराधना करता था। एक बार सुलसा ने उससे कहा- तुम लो । नाग ने कहा- मैं तुम्हारे से ही पुत्र चाहता हूँ ।
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एक बार देवसभा में सुलसा के सम्यक्त्व की प्रशंसा हुई । एक देव उसकी परीक्षा करने साधु का वेश बनाकर आया। सुलसा ने उसके आगमन का कारण पूछा। साधु ने कहा – तुम्हारे घर में लक्षपाक तेल है । वैद्य ने मुझे उसके सेवन के लिए कहा है। वह मुझे दो । सुलसा खुशी-खुशी घर में गई और तेल का पात्र उतारने लगी । देव माया से वह गिरकर टूट गया। दूसरा और तीसरा पात्र भी गिरकर टूट गया । फिर भी सुलसा को कोई खेद नहीं हुआ । साधु रूप देव ने यह देखा और प्रसन्न होकर उसे देते हुए कहा - " प्रत्येक गुटिका के सेवन से तुम्हें एक-एक पुत्र होगा । तुम मुझे याद करना । मैं आ जाऊँगा । यह कहकर देव अंतर्हित हो गया ।
बत्तीस गुटिकाएँ विशेष प्रयोजन पर
सुलसा ने सभी गुटिकाओं से मुझे एक ही पुत्र हो - ऐसा सोचकर सभी गुटिकाएँ एक साथ खा ली। अब उदर में बत्तीस पुत्र बढ़ने लगे । लगी । उसने कायोत्सर्ग कर देव का स्मरण किया। देव आया । सुनाई | देव ने पीड़ा शांत की । उसके बत्तीस पुत्र हुए ।
उसे असह्य वेदना होने सुलसा ने सारी बात कह
(६) रेवती - एक बार भगवान् महावीर मेंटिक ग्राम नगर वित्त ज्वर का रोग उत्पन्न हुआ और वे अतिसार से पीड़ित हुए । कि भगवान् महावीर गोशालक की तेजोलेश्या से आहत हुए हैं काल कर जायेंगे ।
करता था । उसके
पुत्र प्राप्ति के लिए दूसरा विवाह कर
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भगवान महावीर के शिष्य मुनि सिंह ने अपनी आतापना तपस्या सम्पन्न कर सोचा- 'मेरे धर्माचार्य भगवान महावीर पीतज्वर से पीड़ित है। अन्यतीर्थिक यह कहेंगे कि भगवान् गोशालक की तेजोलेश्या से आहत होकर मर रहे हैं । इस चिंता से अत्यन्त दुःखित होकर मुनि सिंह मालुका कच्छवन में गये और सुबक सुबक कर रोने लगे । भगवान् ने यह जानकर अपने शिष्यों को भेजकर उसे बुलाकर कहा - 'सिंह ! तूने जो सोचा है वह यथार्थ नहीं है। मैं आज से कुछ कम सोलह वर्ष तक जा, तूं नगर में जा । वहाँ रेवती नामक श्राविका रहती है। उसने मेरे लिए दो कुष्माण्ड फल पकाये हैं । वह मत लाना। उसके घर बिजोरा पाक भी बना है । वह वायुनाशक है । उसे ले आना । वही मेरे लिए हितकर है। सिंह गया । रेवती ने अपने भाग्य की प्रशंसा करते हुए, मुनि सिंह ने जो मांगा, वही दे दिया। सिंह स्थान पर आया । बिजोरापाकमहावीर ने खाया । रोग उपशांत हो गया ।
केवली - पर्याय में रहूँगा !
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में आये । वहाँ उनके यह जनप्रवाह फैल गया और छः मास के भीतर
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