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GRHASTHA-DHARMA
263 उपदेश दिया। आर्यश्रावक (गृहस्थ) को इन चार कर्मक्लेशों से दूर रहना चाहिये(१) प्राणातिपात, (२) अदत्तादान, (३) कामेसु मिथ्याचार (अर्थात् अब्रह्मचर्य) और (४) मृषावाद । इन चार कारणों के वश होकर पापकर्म में प्रवृत्त नहीं होना चाहिए(१) राग, (२) द्वेष, (३) मोह और (४) भय । ये छः भोगों के अपायमुख (विनाश के कारण) हैं-(१) नशीली वस्तुओं का सेवन, धनहानि, कलह, रोग, अकीति प्रादि इसके दुष्परिणाम हैं। (२) अकाल में रास्तों में घूमना । अपनी अरक्षा, स्त्रीपुत्र की अरक्षा, सम्पत्ति की अरक्षा, दूसरों की शंका का पात्र बनना, आदि इसके दुष्परिणाम हैं । (३) नृत्य-गीत प्रादि का सेवन । नृत्य-गीत आदि में प्रासक्त व्यक्ति इन्हीं के अन्वेषण में परेशान रहता है । (४) जुआ और प्रमाद-कारक वस्तुओं का सेवन । शत्रुता, शोक, धनहानि आदि इसके दुष्परिणाम हैं । (५) पापमित्रों की संगति । ऐसी संगति के परिणाम स्वरूप धूर्त, शराबी, वंचक, प्रादि दुष्ट व्यक्तियों का समागम सुलभ हो जाता है। (६) पालस्य में पड़ना । अतिशीत, अतिउष्ण, अति प्रातः, अति सायं, प्रति क्षुधा, आदि का बहाना लेकर कर्तव्य कर्मों का नहीं करना इसका दुष्परिणाम है ।
अब हम बुद्ध द्वारा उपदिष्ट सामाजिक सम्बन्धों के नियमों पर दृष्टि डालें। माता-पिता, प्राचार्य, स्त्री, पुत्र, मित्र और साथी, दास-कर्मकर एवं श्रमणब्राह्मण के प्रति गृहस्थ के कर्तव्य और गृहस्थ के प्रति उनकी अनुकम्पा (प्रत्युपकार) का वर्णन सिंगालोवाद सुतन्त में इस प्रकार किया गया है :
(१) माता-पिता के प्रति पुत्र के पांच कर्तव्य-उनका भरण-पोषण करना, उनका काम करना, कुल-वंश कायम रखना, दायाद्य प्रतिपादन करना, प्रेतों के निमित्त श्राद्ध-दान देना।
इस प्रकार सेवित माता-पिता पुत्र पर पांच प्रकार से अनुकम्पा करते हैंपाप से बचाते हैं, कल्याण में स्थापित करते हैं, शिल्प सिखलाते हैं, योग्य स्त्री से सम्बन्ध कराते हैं तथा यथासमय दायाद्य देते हैं।
(२) प्राचार्य के प्रति अन्तेवासी के पांच कर्तव्य-उत्थान (मासन से उठकर प्रत्युद्गमन करना), उपस्थान (सेवा), शुश्रूषा, परिचर्या, और सत्कारपूर्वक शिल्पग्रहण ।
__इस प्रकार सेवित होकर प्राचार्य अन्तेवासी पर पांच प्रकार से अनुकम्पा करते हैं-सुविनय से युक्त करते हैं, अच्छी तरह से विद्यायें सिखाते हैं, सभी प्रकार के शिल्प तथा विद्यानों का निःशेष उपदेश देते हैं-मित्र और साथियों का सुप्रतिपादन करते हैं तथा सभी दिशाओं में सुरक्षित रखते हैं।
(३) भार्या के प्रति स्वामी के पांच कर्तव्य-सम्मान पूर्वक सम्बोधन, अपमान न करना, परस्त्री गमन न करना, ऐश्वर्य (कर्तृत्व) प्रदान करना तथा आभूषण मादि प्रदान करना।
___ इस प्रकार पूजित होकर भार्या निम्नोक्त प्रत्युपकार करती है-वह घर का काम भली-भांति से करती है, नौकर चाकर को वश में रखती है, अनतिचारिणी होती है, अजित धन की रक्षा करती है तथा दक्षतापूर्वक गृहकार्य में सदैव तत्पर रहती है ।
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