Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 1
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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GRHASTHA-DHARMA
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'कर्मयोग' के रूप में गाधीजी करते हैं। उनका जीवन इसी समन्वय का प्रतीक है । सदाचार के सभी नियमों का समावेश इसमें अपने आप ही हो जाता है । श्रहिंसा सत्य और ब्रह्मचर्यं का उल्लेख हम कर चुके हैं । रसास्वाद - संयम पर गांधीजी काफी जोर देते हैं । निर्भयता अहिंसा का एक मुख्य अंग है । अस्तेय और अपरिग्रह भी अहिंसा से भी फलित होते हैं । मनुष्य जीविकामात्र का अधिकारी है | स्वामित्व भाव से उससे अधिक रखना चोरी है । जीवन के सभी क्षेत्रों में अन्याय का सामना करने के लिए सत्याग्रह गांधीजी का एक नया श्राविष्कार है । प्राचीन भारत के सारे आध्यात्मिक तथा नैतिक मूल्यों का समन्वय हम गांधीजी के दर्शन में पाते हैं । जैन, बौद्ध एवं ब्राह्मण परम्पराम्रों के नैतिक मूल्य गांधीजी के जीवन में एक रूप लेते हैं तथा प्रवृत्ति एवं निवृत्ति की प्राचीन भेदरेखा संसार एवं निर्धारण को जोड़ने वाली कड़ी बन जाती है ।
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