________________ प्रस्तावना. हो सकता है और वैसे ही ऐसा मनुष्य मरकर भूत प्रेत आदि योनि में भी द्वेषबुद्धिवाला रह सकता है / मनुष्यों और भूतप्रेत भादिके सिवाय दूसरी व्यक्तियों में स्वाभाविक द्वेषबुद्धि होती है कि नहीं इस प्रश्न का पहेलेसे ही निर्णय हो नहीं सकता परन्तु वैसी व्यक्तियों को शान्त करने के पीछे यदि सफलता प्राप्त होवे तो व्यक्ति को शान्त मानकर काल के व्यतीत होने पर उसकी नित्य आराधना करनेमें आती है। और वह प्रयत्न यदि निष्फल जाए तो वैसी व्यक्ति को स्वाभाविक द्वेषबुद्धिवाली और उग्र मानने में आती है। अग्निदेवता के पूजक धर्मगुरु जरथुस्त्रने अपने समय में इस प्रकार के विचार मौजूद पाये। कितनी शक्तिएं उग्र और द्वेषबुद्धिवाली होनेसे दुष्ट मानीजातीं और दूसरी पवित्र अग्नि देवता जैसी, मुख्य रूप में पवित्रता वाली अशुद्धि को शुद्ध करनेवाली और ईमानदारी कि शक्तिएं शुभ मानी जाती थीं। जरथुस्त्र के उपदेशानुसार दुनियां के सब व्यवहारों का संगठन मलीनता और पवित्रता इन दो विरोधी तत्वों पर रचा हुआ है / तत्वों के द्वन्द्व भाव को ही उसका सिद्धान्तरूप माना जाता है और गाथाओं में दैवी शक्ति मूर्तिमती व्यक्ति के रूप में नहीं पर एक तत्व रूप में मानी गई है / अहुरमझद यह विशेष नाम अथवा पुरुषवाचक नाम नहीं परन्तु यह 'प्रज्ञान' के अर्थ में लिया गया शब्द है।