________________ द्वंद्ववाद... से रक्षण करने की ज़रूरत है। समाज की श्रद्धा में वह दृढ़ रहा है यह अधिष्ठाता अर्थात् छ अमषास्पंद अथवा तो इन छओं के मिलने से होनेवाला 'मिश्रदेव ' अहुरमझद ऐसी आज्ञा करता है कि मनुष्यों को हमारी विशुद्धि की सर्व प्रकार से रक्षा करनी उनको यज्ञों की ज़रूरत नहीं और उनको स्तुति का असर होगा नहीं परन्तु पाप के सामने लड़ने में मनुष्य को जो सहायता ऐसे * मिश्रदेव ' रूप अमूर्त निर्गुण तत्व से मिलती है इस से अधिक सहायता की ज़रूरत है। इसके लिए पारसियों को अन्तमें जिस की स्तुति तथा जिसके यज्ञ कर सकें ऐसी सगुण व्यक्तियों का आश्र लेना पड़ा। पीछेसे ' एकीमीनाईड' के समय में अर्थात् इ. स. 400 से पूर्व के लगभग आरटेकझरसीस नेमोन के शिलालेख में अहुरमझद के साथ आर्यों के देव मिश्र का तथा सेमेटिक देवी अनहिता का उल्लेख देखने में आता है। तब वह आरमझद के साथ ही मिला हुआ है परन्तु उनको आरमझद से नीचे की पंक्ति में गिना गया है। अहुरमझद अथवा उसके किसी भी अमषास्पंद से मिश्र अधिक जागृत सगुण और मूर्त देवता है / उन मनुष्यों को उनके कम्मों का अच्छा बुरा फल मिलता है और उनको लौकिक समृद्धि देते हैं तथा ले भी लेते हैं। पारसियों के देववाद में ऐसी मूर्ति के अंतर्भाव होने से उनके मूल विश्वास में स्वाभाविक परिवर्तन हुआ है और जिन का जरथुस्त्र को भी ध्यान तथा वैसे इस कारण के लिए परम