Book Title: Tulnatmak Dharma Vichar
Author(s): Rajyaratna Atmaram
Publisher: Jaydev Brothers

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Page 137
________________ एकेश्वर वाद. यद्यपि मालूम पड़ जाती है तो भी उस समता से उनका भेद खुल जाता है। पत्ते तो पत्ते ही हैं एक परन्तु वृक्ष के पत्तों से दूसरे वृक्ष के पत्ते भिन्न ही होते हैं। हमें तो कारण के बीच का भेद अधिकाधिक सूक्ष्म प्रतीत होगा यह ठीक है पर विज्ञान शास्त्र में ऐसा विश्वास होने लगा है कि सब पदार्थों का आदिकारण रूप परमाणुओं की रचना भी बराबर हो यह संभव नहीं कारण कि एक ही प्रकार के कारण में से भिन्न भिन्न प्रकार के पदार्थ उत्पन्न नहीं हो सकते। इस प्रकार होने से हम आशा रख सकते हैं कि मूसा के पूर्व याहूदी धर्म के कितने विषय दूसरे धर्मों से मिलते होंगे और उस में से कई भिन्न विषय भी मालूम हो जाएंगे। सब प्राचीन प्रजाओं की तरह यज्ञ क्रिया को याहूदी अपनी मुख्य धार्मिक क्रिया के रूप मानते थे, अर्थात् यह बात दूसरे धर्मों से मिलती है। इस यज्ञ से वह समाज के देवता की पूजा करते और दूसरी सब जगह जसा किया जाता उसी प्रकार यह क्रिया याहूदिओं में भी समाज के नेता द्वारा होती थी / देवता. समाज की आपत्तियों से रक्षा करते हैं तथा उनका अपराध होता है तब आपत्तिएं पड़ने देते हैं ऐसा वह मानते। इस प्रकार समाज में जो आचार पालने का रिवाज प्रचलित है वह देवता की इच्छानुसार है तथा जिन अपराधों को समाज दंडनीय समझता वह अपराध देवता के अनुकूल नहीं ऐसा वह मानते। मूसा के पूर्व के याहूदी दूसरे लोगों की तरह ऐसा भी मानते कि व्यक्ति के अस्तित्व का

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