Book Title: Tulnatmak Dharma Vichar
Author(s): Rajyaratna Atmaram
Publisher: Jaydev Brothers

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Page 135
________________ 130 एकेश्वर वाद. उनकी किसी भी समय पूजा नहीं की जातीथी। ऐसा पश्चिमीय अफ्रिकावासियों का निर्णय हम स्वीकार नहीं कर सकते। ____एक समय ऐसे बड़े देवों की भी पूजा की जातीथी ऐसा मानें तो उसका धार्मिक इतिहास के साथ विरोध नहीं हो / अब हमें केवल इतिहासमें से ही ऐसे दृष्टान्त ढूंड निकालने पडेगें, कि जिसमें अमुक देवता को प्रथम अनेक देववाद के देवों में गिना जाता हो, और पीछे से उसे व्यवहारिक धर्म में से निकालकर उसकी पूजा बंदकी, उसके नाम को ही देवताके रूपमें माना जाता हो / ऐसा ही एक दृष्टांत वेद में से मिलता है / बड़े प्रभाव वाले " द्यौः पितर " का वेदमें केवल सामान्य वर्णन किया गया है / पश्चिम आफ्रिका के लोगों के ' अनिएम्बे' की तरह वह कुछ करता नहीं, तथा उसकी पूजा भी नहीं की जाती। वह एक ही नामका देव रहता है और उसकी पूजा बंद होने के पीछे उसके जैसे दूसरे देवकी पूजा की जाती है / दूसरे बड़े देवकी तरह भी उसे माना जाता है। प्राचीन छोटे देव और एसे बड़े देवों में इतना ही फरक है कि छोटे देवों का देवत्व भी नष्ट हो गया है और बड़े देव उतने अंश में भी स्थित रहे हैं। जहां एक धर्म का दूसरे धर्म से पराजय हुआ है वहां ऐसे छोटे देवों को बड़े देवों की तरह माना गया है। ऐसा ईरान में हुआ है। और वहां प्राचीन धर्म के देवताओं को अवस्ता में 'दएव' अर्थात् भूतप्रेत पिशाच राक्षसादि के रूप में वर्णन किया गया है।

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