________________ 148 एकेश्वर बाद. वैसा नहीं करते / केवल याहूदी लोगों में ही निजू यज्ञों का ही किए जाते हैं तबतक आत्महितका प्रश्न एक ओर रहता है। परन्तु जब एक व्यक्ति के हित के लिये निजू यज्ञ किये जाते हैं और जब ऐसे धर्म, का अङ्ग मानेजाते हैं तब धर्म के अर्थात् मनुष्यों के अपने देवता संबंधी स्वरूप में खास परिवर्तन होता है और धर्म की भावना की अधोगति होती है। यज्ञ क्रिया एक व्यापार रूप होजाती है और उसमें सर्वांश में वणिक् वृत्ति प्रवेश कर जाती है तथा मात्र स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ही यज्ञ करनेकी आवश्यकता है ऐसा सब कोई मानने लगते हैं। इस प्रकार मनुष्य की और देवकी अप्रतिष्ठा होती है / देव सामान्य व्यापारी के दर्जे पर आजाता है और मनुष्य केवल स्वार्थी बनजाता है। ____ इस प्रकार होने से यज्ञ क्रिया में समाई हुई उपासना की भावना नष्ट हो जाती है और रूढ़ि के प्राबल्य से यद्यपि क्रिया वैसी की वैसी रहती है तो भी उसमें धार्मिक अंश उड़जाता है। ऐसी समाज के मनुष्यों का स्वतंत्र हक नहीं स्वीकार करनेवाली अथवा मनुष्य की और देवकी अप्रतिष्ठा हो इस प्रकार मनुष्य व्यक्ति का स्वतंत्र पूजा का हक स्वीकार करने की धार्मिक क्रिया का ईसाई धर्म में अंतर्भाव नहीं हुआ। मनुष्य का अपने पड़ोसी पर तथा अपने ईश्वर पर के प्रेम के आधार पर रचे हुए संप्रदाय में स्वार्थ वृत्ति को स्थान नहीं रहता /