Book Title: Tulnatmak Dharma Vichar
Author(s): Rajyaratna Atmaram
Publisher: Jaydev Brothers

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Page 152
________________ तुलनात्मक धर्मविचार. 147 जहां पूजा विधि की समाप्ति यज्ञ क्रिया में हो गई देखने में आती है वहां यज्ञ क्रिया द्वारा समाज अपने ईश्वर के समक्ष जा सकता है / परन्तु यह क्रिया समाज को व्यक्ति और ईश्वर के बीच एक भेद रूप होता है। ऐसा हमने याहूदी धर्म में देखा है / ब्राह्मण धर्म में यह भेद रूप यज्ञ क्रिया को ही एक परम तत्व रूप गिना गया है और इस लिए देवता भी अति गौण हो गए हैं। दूसरे कई प्राचीन धर्मों में समाज के मनुष्यों को ईश्वर पूजा का स्वतंत्र अधिकार न मिलने से वह अपने हित के लिए निजू रीति पर यज्ञ करने में या जादु क्रियाओं में प्रवृत्त देखे जाते हैं / इस की पूजा करने वाले तथा ईश्वर और मनुष्य संबंधी विषयक कल्पना पर खराब असर हुआ है। जिन बातों को समाज विरुद्ध और अधार्मिक मान कर स्वयं धिक्कार करता है उन बातों को सिद्ध करने के लिए जादु का आश्रय लिया जाता है और जादु का उपयोग करने वाले मनुष्य खुद धर्म और नीति के नियम विरुद्ध आचरण करने में फतेहमंद होंगे ऐसा मान बैठते हैं / इसका परिणाम ऐसा होता है कि जिन के अस्तित्व और जिन की प्रवृत्तियों से समाज को नुक्सान हो ऐसे मनुष्यों की संख्या बढ़ती है और इस को रोका न जाए तो समाज की हानि होने की संभावना है। जादु से निजू यज्ञ अधिक हानिकारक होते हैं कारण कि उन पर दुर्लक्ष्य किया जाता है / धार्मिक भावना के कारण जादु को तत्काल धिक्कार दिया जाता है परन्तु निजू यज्ञों को

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