Book Title: Tulnatmak Dharma Vichar
Author(s): Rajyaratna Atmaram
Publisher: Jaydev Brothers

View full book text
Previous | Next

Page 155
________________ 150 एकश्वर वाद. . ईसाई धर्म की पूजा की कल्पनाने समाज की कल्पना में इस से भी विशेष परिवर्तन किया है / दुनिया के सब धर्मों में समाज के मनुष्यों का तथा उन के देव का ' समाज' में समावेश किया गया है कारण कि यज्ञ में किए जाने वाले भोजन समारंभों मे देव और उन के पूजा करने वाले भाग लेते थे और यज्ञ द्वारा पूजा करने वाले अपने इष्ट देव के सामने पहुंच सकते / परन्तु ज्यूं ज्यूं अनेक देव वाद वृद्धि करता गया त्यूं त्यूं मनुष्य व्यक्ति के हित का नहीं परंतु समाज के हित की रक्षा करने वाले देवों का भी एक भिन्न ही समाज माना जाने लगा और तब भी देवों का और समाज का संबंध यज्ञों द्वारा हो सकता है यह विश्वास तो प्रचलित रहा / परन्तु जितने अंश में यज्ञ किसी भी प्रकार के लाभ के लिए किए जाने लगे उतने अंश में उन के आध्यात्मिक स्वरूप में परिवर्तन होता गया / ऐसी धार्मिक भावना का विरोध संबंध बहुत देर तक न स्थित रह कर, मनुष्य और देवों को अलग कर दे यह संभव था। इस के अनुसार देवों की समाज मनुष्यों की समाज से भिन्न मानी जाने लगी और यज्ञ की धार्मिक क्रिया इन दो समाजों को एकत्र नहीं रख सकी / / ईश्वर प्रेममय है और मनुष्य अपने पड़ोसी पर और अपने ईश्वर पर प्रेम रखे इस ईसाई धर्म के सिद्धांतने पूजा करने बालों के समुदाय को जिस ईश्वर के राज्य लाने के लिए 'लार्ड्स प्रेयर ' में पहले ही मांगा है उस ईश्वर के राज्य में अंतर्भाव

Loading...

Page Navigation
1 ... 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162