Book Title: Tulnatmak Dharma Vichar
Author(s): Rajyaratna Atmaram
Publisher: Jaydev Brothers

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Page 150
________________ तुलनात्मक धर्मविचार. 145 बलरूप मनुष्य का उसके पड़ोसी के साथ का तथा ईश्वर के साथ का संबंध का निर्णय करने में सहायतार्थ होता है ऐसा हमें ज़ोर से कहना चाहिए। . धर्म के इतिहास में ईसाई धर्म का स्थान निश्चित करने के लिए अर्थात् ईसाई धर्म के साथ मुकाबला करके तुलनात्मक पद्धति से जिन जिन धर्मों के स्वरूपों का निरीक्षण किया गया है उन स्वरूपों में कितनी समता है तथा कितनी विषमता है यह समझने के लिए प्रेम पर बताए हुए अर्थ पर ज़ोर देने की जरूरत है। ईसाई धर्म उत्पन्न हुआ इससे पूर्व हज़ारों वर्ष तक जहां जहां मनुष्यों का समाज बना होगा वहां वहां मनुष्य अपने जाति के भाइयों पर प्रेम रखते ही होंगे ऐसा हमें मान लेना पड़ता है कारण कि इसके अभाव में समाज इकठ्ठा रह ही न सके / हम प्रेमका अस्तित्व केवल अनुमान पर से ही इस प्रकार मान लेते हैं इस लिए प्रेम यह समाज के निर्माणका प्रयोजक बल है ऐसा उस समय की प्रजा में बहुत ही थोड़े अंश में होना चाहिए और प्रेम के अलावा दूसरे भी कई प्रयोजक बल अस्तित्व रखने वाले होंगे ऐसा इस पर से सिद्ध होता है। जीवन युद्ध चलाना, आत्मरक्षा करनी और समाज संरक्षण जो एक प्रकार से आत्म संरक्षण है उस में प्रवृत्त रहना यह प्रकृति का मुख्य धर्म है। उस समय के मनुष्य यद्यपि अपनी ही समाज के मनुष्यों पर ज्ञानपूर्वक या अज्ञान से थोड़ा बहुत प्रेम कभी रखते होंगे

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