Book Title: Tulnatmak Dharma Vichar
Author(s): Rajyaratna Atmaram
Publisher: Jaydev Brothers

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Page 146
________________ तुलनात्मक धम्मैविचार. 141 से उनके धर्म में मनुष्य व्यक्ति का ईश्वर के साथ संबंध जोड़ने का हक नहीं रहता। धर्म में एक व्यक्ति के रूप में उन्हें स्थान नहीं। उनकी यज्ञक्रिया भी सब समाज तरफ से ही की जाती थी। समाज की व्यक्ति को यज्ञ करने का अधिकार न था इस से वह क्रिया मनुष्य व्यक्ति के स्वतंत्र धर्म के अंतर रूप थी। इस्लाम धर्म में ऐसा भेद न था उस में यज्ञ नहीं किया जाता और माना जाता / यज्ञ के बदले ईश्वर की स्तुति की जाती है / ईसाई धर्म में जैसा स्तुति का अर्थ किया जाता है वैसा ही अर्थ इस में भी किया जाता तो मनुष्य व्यक्ति के धार्मिक स्वातंत्र्य विषय इन दो धर्मों में बहुत मत भेद न रहता / परन्तु इस्लाम धर्म में स्तुति की सफलता का आधार स्तुति करने वाले की मनोवृत्ति पर नहीं परन्तु जो विधिपूर्वक वह की जानी चाहिए उस विधि के यथार्थ परिपालन पर है। इस स्तुति का उद्देश्य ईश्वर के गुण गाने तथा उसे धन्यवाद देने का होता है। मनुष्य व्यक्ति को अपनी लालसा में से और पाप कर्मों में से बचने के लिए उसमें प्रार्थना नहीं की जाती परन्तु इस्लाम समाज को आपत्तिओं से मुक्त करने के लिए प्रार्थना की जाती है। इस प्रकार इस्लाम धर्म में भी दूसरे धर्मों की तरहईश्वर की उपासना को समाज का कर्त्तव्यरूप माना गया है / ईश्वर की उपासना करने के लिए उपासक का ईश्वर के. के साथ स्वतंत्र संबंध होने की आवश्यकता नहीं प्रतीत होती।

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