________________ 126 एकेश्वर वाद. नाता तथा अवनत और जंगली प्रजाएं भूत प्रेत राक्षस आदि को मानती हैं और हम यह भी कह सकेंगे कि एकेश्वर वाद तथा अनेक देव बाद के प्रचार होने से पूर्व मनुष्य देव भूत प्रेतादि की पूजा करते थे ऐसा धर्म के भिन्न भिन्न रूपान्तरों के इतिहास से मालूम पड़ता है। इस प्रकार पूजा किए जाने वाले देव भूत प्रेतादि के आरंभ में नाम न रखे गए थे। कुछ . समय के बद जिन जिन पदार्थों में उनका आविर्भाव माना जाता, उन उन पदार्थों के नाम उन्हें दिए जाते, उदाहरणार्थ सूर्य चंद्र द्यौ मरुत् वनस्पति और प्राणी / अन्त में जब उनके नाम भूल गए और अर्थ ज्ञान नष्ट हुआ तब यह नाम विशेष नाम के रूप में माने जाने लगे और उनसे पदार्थों का नहीं परन्तु केवल अमुक मूर्ति ही का बोध होने लगा। इस पर से हम ऐसा अनुमान कर सकते हैं कि धर्म 'रूपी मंदिर तिमंजला है / और कई लोग भूत प्रेतादि की पूजा रूपी प्रथम मंजिल को बांधकर रुक कर ही रह गए हैं। बहुतों ने तो अनेक देवता रूपी दूसरी मंजिल बांधी है और थोड़ोने एकेश्वरवाद रूपी तिसरी मंजिल बांधकर उस मंदिर को * पूर्ण किया। इस अनुमान के विरुद्ध ऐसा भी वितर्क हो सकता है कि मनुष्य प्रथम एक ही ईश्वर को मानते थे और इस 'विश्वास से गिरकर वह अनेक देववाद को तथा देव-भूत प्रेत राक्षसादि को मानने लगे / इस वितर्क का परिणामवाद