________________ . तुलनात्मक धर्मविचार. 127 के साथ विरोध नहीं होता, कारण कि क्रम से वृद्धि ही होनी चाहिए ऐसा परिणामवाद का अर्थ नहीं / मनुष्य के दृषि केन्द्र से अथवा उसके नियम से प्रत्येक परिवर्तन मूल पदार्थ के परिणाम के क्रम की अमुक अवस्था रूप है अथवा अवनति रूप है ऐसा वह नहीं मानता / भूतकाल में धार्मिक विश्वास में हुए हुए परिवर्तन शायद एक ही समय परिणाम क्रम की अवस्था रूप तथा एकेश्वर वाद को ही मानते थे यह बात सिद्ध करने के लिए यह भी कार्य से कारण का अनुमान करने से इस वितर्क को हम एक तरफ रख सकते हैं। कार्य से कारण का अनुमान करने के नियम को यदि हम स्वीकार करेंगे तो भी धर्मों के इतिहास का उससे विरोध होता है। धर्मों के इतिहास में प्रगट घटनाओं तथा सिद्ध बातों से हमारे अनुमानों का समावेश हो सकता है। अब हमें इतना ही देखना है कि उसमें जो जो बातें स्वीकार की गई हैं अथवा वर्णन की गई हैं उनमें प्राचीन काल में मनुष्य एकेश्वरवाद को मानते थे ऐसी सूचना करने वाला कोई भी विषय मिलता है कि नहीं। ___ नीच जातियों में भी बड़े देवता माने जाते थे इस विषय की पुष्टि में तथा और कई बातों के लिए धार्मिक विज्ञान मि. एन्ड्यूलैंग का कृतज्ञ है / नाम विना के भूत प्रेत राक्षस इत्यादि को उपासना से आगे अवनत जंगली मनुष्यों में भी