________________ 14 . बौद्धधर्म. वहां उसे इस जन्म से भी अधिक दुःख भोगना पड़े / इस क्रम का अंत ही नहीं आता और मनुष्य इस प्रकार निरंतर चक्र में फिरता ही रहता है। इस परसे बुद्धने दुःख में से छूटने का व्यवहारिक प्रश्न उठालिया और इसका निर्णय करने के लिए प्रथम तो उसे देवताओं तथा उनकी पूजा को एक तरफ रखने की ज़रूरत पड़ी / देवताओं का निषेध करने की नहीं परन्तु उनका दुर्लक्ष्य करने की आवश्यकता है / ब्राह्मणोंने देवताओं की पूजा की मुख्य विधिरूप यज्ञों की विधि को हद से अधिक बढ़ा दिया था परन्तु मनुष्यों के दुःख कम नहीं कर सके थे वैसे ही उस ओर विचार भी नहीं किया था; इस से बुद्धदेवने बताया कि देवताओं पर श्रद्धा रखना निरर्थक है और मनुष्य को अपने आप ही मुक्ति मिलनी चाहिए / दुःख से मुक्त होना ही मनुष्य जीवन का अंतिम उद्देश्य है और वहां पहुंचने का मार्ग भी मनुष्य को ही पार करना है / देवताओं संबंधी वि. चार करना भी ठीक नहीं। / इस प्रकार बुद्ध का उपदेश केवल अधार्मिक है / यदि उसके अनुयायी इस उपदेश को लगे रहते, तो बौद्ध धर्म एक धर्म के रूप में माना न जाता / देव को न मानो और पूजा न करो इतने में ही उस धर्म का समावेश हो जाता परन्तु वास्तव में बौद्ध धर्म एक धर्म है और उस में देव को मूर्तिमान् देव माना जाता है / बुद्ध की व्यक्ति पर ही सारे बौद्ध