________________ 106 द्वंद्ववाद. की अन्तिम न्याय की योजना में यज्ञ तथा स्तुति को अवकाश ही नहीं रहता दया और क्षमा के लिए उस के उपदेश में .एक भी शब्द इस्तेमाल किया हुआ देखने में नहीं आता परम प्रज्ञा को यज्ञ की रिश्वत दी नहीं जा सकती अथवा स्तुतिद्वारा धोखा भी दिया जा सकता नहीं / अवस्ता में धर्म के लिए मात्र दीन ( कायदा ) शब्द ही मिलता है / दुनिया में अच्छा है और बुरा भी है और अन्तिम न्याय के दिन अच्छों का विजय होगा ऐसे विश्वास पर जरथुस्त्र का नया धार्मिक सिद्धांत रचा हुआ था। पुण्य पाप के द्वंद्व में मनुष्य फंसा हुआ है और उसके कर्मानुसार अन्तिम निर्णय होगा। विशुद्ध पवित्र और प्रामाणिक रहने से मनुष्य अन्तिम विजय की ओर प्रयाण कर सकता है और पारसी जो दीन अथवा कायदे को धर्म मानते हैं उसके अनुसार अन्तिम दिन उनका न्याय होना है। बलिदान और यज्ञों से नहीं परन्तु प्रमाणिक सत्य और न्याय कर्म करने से ही मनुष्य बच सकता है इस प्रकार जरथुस्त्र के सुधार कर्मकाण्ड का अन्त लाए। और यज्ञ विधि तथा स्तुति को फजूल तथा आपत्ति बनक माना गया / परन्तु परम प्रज्ञा अथवा अहुरमझद के तीन गुणों में से एक गुण * विशुद्धि' होने से प्रायश्चित्त और पश्चात्ताप के कर्मों की वृद्धि हुई। अहुरमझद को ' मिश्रदेव' बनाने पाले उसके छ अमषास्पंदों में से अग्नि पृथिवी और जल इन