________________ 10 // .. द्वंद्ववाद... . पारसी धर्म के द्वंद्ववाद के इस तत्व का अथवा तत्वों के संबंध में जरथुस्त ने ऐसा नहीं माना कि वह शक्तिएं एक अमुक देहधारी व्यक्ति के आविर्भाव हैं। जिन देवों की पारसी तथा हिंदुओं के बुजुर्ग पूजा करते थे, उन देवों को पारसी लोग दुखों जैसा माने इतनी ही जरथुस्त को उस समय ज़रूरत थी ऐसा हम वास्तविक रीति से अनुमान कर सकेंगे। पारसियों के पुराने धर्मग्रन्थों अर्थात् गाथाओं में दैव और द्रुख यह दो पाप के ही अविर्भाव हैं ऐसा बताया है। इस से अधिक तत्वज्ञान में आगे बढ़े नहीं / केवल अवस्ता के बहुत प्राचीन विभाग में दुष्ट शक्तियों के नायक रूप अहिमान की गुणधर्भवाली मूर्ति हमारे सन्मुख खड़ी होती है। ____पारसी धर्म के द्वंद्ववाद. के दूसरे तत्व की ओर हम दृष्टे डालेंगे तो हमें मालूम पड़ेगा कि जरथुस्त और गाथाओं का अहुरमझद को एक स्वतंत्र देव की तरह मानना कि एक ‘मिश्रदेव' की तरह मानना, इस के निर्णय करने में बड़ी कठिनाई आती है। अहुरमझद को ' मिश्रदेव ' गिनने का यह कारण है कि वह अपने गुर्ग का अवीव रूप छ व्यक्तियों द्वारा अपना वल तथा ऐश्वर्य अज़माते हैं। इन छ पार्षदों अर्थत् फरिस्तों को * अमषास्पंद' कहते हैं। वह अमर और पवित्र हैं। वह अग्नि पृथ्वी जल धातु पशु और वनस्पतियों के अधिष्ठाता हैं इस प्रकार पारसी धर्म के द्वंद्ववाद में जितना अमपास्पंद का 'स्पेन्तमेइन्यू' अथवा भ्रम शक्ति के साथ संबंध