________________ द्वंदवाद. है इतना ही नहीं परन्तु उसका महत्व भी उसने बढ़ाया है और परापूर्व से चलता है ऐसा जरथोत्री धर्म में भी उसे मुख्य धर्म क्रिया माना गया है। दूसरे धार्मिक सुधारकों की तरह वह भी नया धर्म की स्थापना करने वाले के रूप में अपने भाप को मानता नहीं केवल वह पुराने धर्म का उद्धारक होने का दावा करता है। यदि अमि देवता उसके कुल का वंश परंपरा से माना जाता देव था और जिसका वह स्वयम् उपासक था वह अमिदेवता एक 'अहुर' अर्थात् दैवी व्यक्ति अथवा देव था और उसने ' अहुरमझद' के रूप में मान कर नब उसने प्रतिष्ठा बढाई तब 'अहुरमझद' नया देव है ऐसा उसने कभी भी प्रगट नहीं किया। उस के विश्वास के अनुसार वह केवल पुराने देवता की उपासनाका ही उद्धार करता था। बहुरमझद के संबंध में सर्वदा शास्त्रीय कल्पना ऐसी की गई थी कि वह स्वयंभू ज्योति में प्रकाश होने वाली ज्वाला रूप है। जरथुस्त ने अपने विश्वासानुसार धर्म का उद्धार करने का जो कार्य आरंभ किया था उसके साथ साथ धर्म में सुधार करने की भी उसे आवश्यकता प्रतीत होने लगी और सुधार में उसने पारसियों के हिंदु-पारसी के बड़ों से प्रचलित की तरफ से उसे सहारा मिला। इस प्रकार * देवों' की पूजा का लोप किया गया था तो भी उनका अस्तित्व पारसी प्रजा की वृत्ति में तो प्रचलित ही रहा और उनको झूठे देवताओं के