Book Title: Tulnatmak Dharma Vichar
Author(s): Rajyaratna Atmaram
Publisher: Jaydev Brothers

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Page 81
________________ पितृपूजा. स्वाभाविक रूप में मानी जाने लगीं, ऐसे बलिदान प्रथम वार अमिसंस्कार अथवा पृथिवी भूसंस्कार करते समय दिए जाते और मृत मनुष्य दूर ही रहेगा ऐसा निश्चय होने पर थोड़े समय के बाद बारबार दिए जाने लगे। चीन में एप्रिल महिने तथा मकर संक्रांति पर कबरिस्तान में जाकर बलि देने का रिवाज है, ऐसी ही क्रिया रोम में फेब्रुअरी और दिसम्बर में की जाती हैं। ग्रीस के वार्षिक बलिदान फेब्रुअरी में किए जाते हैं। ___ अब तक बलिदान देने का कारण सिर्फ इतना ही मालूम होता है कि भूतों को चले जाने और सदैव के लिए दूर रखने के लिए ललचाया जाए और हम प्रथम बता चुके हैं उसी के अनुसार बहुत करके जो शक्तिएं समाज पर आफत लाती हैं, ऐसा माना जाता है, और जिनको अन्त में देवता के रूप में मानते उन्हें बहुत करके इसी कारण के लिए बलिदान दिया जाता होगा और उन्हीं के लिए यज्ञ कराते होंगे। इस प्रकार देवताओं और पूर्वजों के भूतों के बीच में सामान्यता देखने में आती है तो भी उन में बहुत महत्व पूर्ण भेद देखे जाते हैं। देवताओं की ओर से आफत आएगी ऐसा भय समाज को नहीं रहता और इस लिए योग्य कार्य करने का समय भी समाज का ही था परन्तु पूर्वजोंकी ओर से आफत आने का भय केवल मृत मनुष्यों के कुटुम्बियों को ही होता और इस लिए योग्य तजवीज करने काम भी उन्हीं को होता। इस भेद

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