________________ भावी जीवन. करने से व्यक्ति के अस्तित्व का अंत आता है कि नहीं इस विषय पर बुद्धने अपना अभिप्राय बताने से साफ इन्कार कर दिया / इस प्रश्नने तथा ईश्वर है कि नहीं ऐसे अनेक धार्मिक महत्व के धार्मिक प्रश्नों को उसने अज्ञेय माने हुए हैं / उसके अनुयायी ऐसी स्थिति को कायम नहीं रख सके / वह बुद्धको ईश्वर मानते हैं और अस्तित्व के अंत को नहीं परन्तु कृतार्थ मनुष्यों के जीवन को वह निर्वाण कहते हैं / ऐतिहासिक धर्मों में प्रतीत होती भावी जीवन की भावनाओं का इस संक्षिप्त अवलोकन से इतना तो स्पष्ट समझ में आता है कि किसी भी धर्म में मृत्यु के बाद व्यक्ति के अस्तित्व का अंत आता है ऐसा नहीं माना गया / केवल भिन्न भिन्न धर्मों में भावी जीवन पर थोड़े बहुत प्रमाण में ध्यान दिया गया है। हिंदु धर्म के भिन्न भिन्न संप्रदायों में इस विषय में बहुत थोड़ा वादविवाद किया गया है। चीन और प्राचीन ग्रीस तथा रोम में मृतकों की क्या गति होगी तथा उनकी क्या दशा होगी इस पर ध्यान न देते हुए मृतकों के भूत पीछे जीवित रहे हुए मनुष्यों का क्या हानि लाभ कर सकेंगे इस विषय पर पूर्ण ध्यान दिया है। बैबिलोनिया और असीरिया में तथा याहूदिओं में धर्म व्यक्ति का नहीं परन्तु सब समाज का है ऐसा खास माना जाता है और इस से देवके साथ व्यक्ति का नहीं परन्तु समाज का संबंध है ऐसा भी माना गया है तथा राजकीय समाज और धार्मिक समाज