________________ तुलनात्मक धर्मविचार. संबंध है ऐसा वह नहीं मानते / ब्राह्मण धर्म में तो ऐसा माना जाता है कि अपने कानुसार ही दूसरा जन्म प्राप्त होता है और दुष्ट जीवात्माओं की शिक्षा के रूपमें कोई भी पशु के देह को धारण करना पड़ता है जिसमें रह कर वह अपने कानुसार ही दूसरा जन्म प्राप्त होता है और दुष्ट जीवात्माओं को शिक्षा के रूप में कोई भी पशु के देह को धारण करना पड़ता है जिसमें रह कर वह अपने दुष्ट कर्मों का फल भोगते हैं और फिर पुनः मनुष्य स्वरूप में आते हैं। प्रत्यक्ष दृष्टिगत होने वाले इस अपार संसार चक्र में से किस प्रकार छूट सकें यही हिंदुओं के विचार का गूढ़ विषय है। ब्राह्मण धर्म एक धर्म के रूप में इसका उत्तर दिया जा सके ऐसा प्रतीत नहीं होता; परन्तु एक दर्शन शास्त्र के रूप में तत्व ज्ञान के नियम से उसका निर्णय करता है वह इस प्रकार कि आत्मा अथवा स्वयम् ब्रह्म से अभिन्न हैं और एक ब्रह्म ही सत्य है और जन्म जन्मांतर के बंधनों से आत्मा को मुक्त करना ही मोक्ष कहलाता है। यह प्रश्न बुद्ध भगवान् को अधिक महत्व पूर्ण लगा। जन्म जन्मांतरोंके बंधनों से मनुष्य को किस प्रकार मुक्ति दिलाना ? यह एक ही प्रश्न मनुष्य के हित के लिए महत्वका है ऐसा उसकी बुद्धि में आया और संसार में से मुक्ति प्राप्त करने के लिए उसने निर्वाण की कल्पना की / निर्वाण प्राप्त