________________ भावी जीवन. है वैसे ही धर्म मात्र समाज का ही नहीं परन्तु मनुष्य का है ऐसी भावना उसने उत्पन्न की। ईश्वर की भावना का विस्तार करने से समाज का और समाज के व्यक्तियों का भी है ऐसा बताया है / ज्यूं ज्यूं ईश्वर संबंधी मनुष्य की कल्पना विस्तृत होती है त्यूं त्यूं अपनी जाति के संबंध में भी उसकी कल्पना विस्तृत होती है। अपनी व्यक्ति के संबंध में मनुष्य की कल्पना का 'विस्तार दो प्रकार हो सकता है / एक तो जब अपने आप को वह स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में मानता है तब और खुद व्यक्ति के रूप में ही अपना अभीष्ट सिद्ध कर लेगा ऐसा मानता है तब; और दूसरा जब वह स्वयम् एक समाज के अंग रूप मानता है और समाज के अंग रूप ही अपनी व्यक्ति का उसे ज्ञान होता है तथा स्वयं उन्नति करता है ऐसा मानता है तब, अपने संबंध में वह जैसी कल्पना करता है उसका प्रतिबिंब स्वाभाविक रीतिसे उसकी परलोक की भावना में होता है। प्राचीन मिसर वासियोंने ऐसी कल्पना की थी / परलोक में वह स्वयं स्वतंत्र रीतिसे परम सुख प्राप्त करेंगे / प्राचीन पारसियों की तरह अथवा तो आधुनिक मुसलमानों की तरह उन्होंने परलोक में अपनी समाज को स्थान न दिया था / इन तीनों धर्मों में स्वर्ग में लौकिक सुख भोगने के स्थान की कल्पना की है / स्वर्ग में मनुष्य की इच्छाएं परिपूर्ण होती हैं और वह स्वयं भोग भोगता है / उनकी मनुष्यत्व की कल्पना