________________ 80 पितृपूजा. को धर्माधिकार में विशेष महत्व का स्थान दिया हुआ है। अर्थात् सम्राट के पितरों को भी प्रधान देवता के रूप में माना नहीं गया है पितृ पूजा का महत्व बढ़ाने के लिये कई प्रकार की युक्तिएं की गई हैं। सूर्य चन्द्र जो खुद आरंभ से ही देवता के रूप माने गए थे उनकी सम्राट के पितरों की पूजा को प्राचीन सूर्य चन्द्र की पूजा के साथ मिला दिया गया है और धर्माधिकार में सम्राट को द्यौः देवता के पुत्र रूप में स्थान दिया गया है तथा दूसरे प्रकार से भी देव पूजा तथा पितृ पूजा का मिश्रण किया गया है / दूसरे स्थानों में वर्षा ऋतु के आरंभ में वृष्टि देवता का यज्ञ किया जाता है परन्तु चीन में तो इस प्रसंग पर वृष्टि और मेघ गर्जन के राक्षसों के, वैसे ही सम्राट के पितरों के यज्ञ किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त अनावृष्टि अकाल इत्यादि आफतें वृष्टि देवता के क्रोध से आ पड़ती हैं ऐसा न मानते जिन की दहन क्रिया बराबर नहीं की जाती उनके प्रेतों. के गुस्से से ऐसी आफतें आती हैं ऐसा माना जाता है। इसी प्रकार नई धान्य की बलियों के विधि से खेती के देवताकों की पूजा के अंग के रूप न मान कर उसे पितृ पूजा के अंग के रूप में मानते हैं / अन्य धर्मों में तथाच चीनमें भी पशुओं की बलि देवताओं को चढ़ाई जाती है। देवताओं को देने के बाद पूजा की नैवेद्य का प्रसाद लेते हैं और ऐसा करने से अपने देवताओं के संबंध को पुनः ताजा करते हैं। वीन में सम्राट के पितरों की पूजा देव पूजा की रीतिसे तथा