________________ .. यश. होता है / स्तुति के लिए ही उसका अस्तित्व है और उसकी समाप्ति भी स्तुति में ही है / वेदों में वर्णित सब देवताओं में ब्रह्म सर्वोपरि माना जाता है और ब्रह्म का अर्थ मात्र ही स्तुति है / यह स्तुति आपत्ति में से बचने के लिए तथा ऐहिक समृद्धि प्राप्त करने के लिए की जाती है। परन्तु धन्यवाद प्रदर्शित करने के लिए स्तुति नहीं की जाती / वेद के शब्द कोष में आभार - मानने का शब्द ही मिलता नहीं। आरंभ में देवताओं के समीप पहुंचने तथा इष्ट वस्तु संपादित करने के साधनरूप इस स्तुति को पीछे साध्य रूप माना गया और इससे तर्पण और यज्ञकी क्रियाएं पूजनीय मानी जाने लगीं / पीछे के समय में जैसा एक ही शब्द का अग्नि और अमि देवता अथवा द्यौः और द्यौ-देवता ऐसे दो अर्थ किए गए वैसे ही स्तुति के भी स्तुति तथा स्तुति देवता अर्थत् ब्रह्म यह दो अर्थ किए गए हैं / इस प्रकार स्तुति रूप धार्मिक क्रिया को ही ब्रह्म के रूप में माना गया है और इस ब्रह्म की पूजा करने वाले ब्राह्मण होते हैं। इस पर से यह तो स्पष्ट समझा जा सकता है कि जो ब्राह्मण जाति की अभिवृद्धि के अनुकूल दशा न मिलती तो इस प्रकार की धार्मिक उन्नति भाग्यवशात् ही होती / हिंदुस्थान में बने हुए ज्ञाति निर्माणों के विकास से ऐसे संयोग मिले होने से हम इस पर दृष्टिपात करेंगे / यहां पर सामान्य रीति से