________________ 54 यज्ञ. स्वयं ही ईश्वर के रूप में पूजा जाता है और इस लिए इसको एक धर्म के रूप में मानने से कोई हानि नहीं आती। ब्राह्मण धर्म में तथा याहूदी धर्म में होनेवाली यज्ञ क्रिया के प्रचार को रोकने के लिए जो नई प्रवृत्तिएं चली हैं उन्होंने व्यक्तिगत स्वतंत्र धर्म भावना को उत्तेजन दिया है। यज्ञों के संबंध में इतनी बातें बताकर अब हम इस पर से प्राचीन काल के यज्ञों की भावना कैसी थी उसका निर्णय करें। अपत्तियों से मुक्त होने पर तथा अपने निर्वाहार्थ साधन प्राप्त करने के लिए मनुष्य को देवता की शरण जाना चाहिए और बलिदान देकर उसे प्रसन्न करना चाहिए ऐसा विश्वास सब धर्मों में सामान्य रीति पर देखनेमें आता है। इसी प्रकार सब धर्मों में आफतों को दूर करने की तथा लौकिक सुख देने की शक्ति रखने वाले व्यक्ति की देवता के रूप में कल्पना की गई है। और ऐसे देवताओं को बलिदान देने की क्रिया को यज्ञ के रूप में गिना गया है। जापान के शिन्तो धर्म में तथा याहूदी धर्म में भी ऐसी कल्पनाएं की गई हैं कि समाज और देवता के बीच में की गई प्रतिज्ञा के आधार पर समाज का देवता के प्रति संबंध बना रहने से की हुई प्रतिज्ञानुसार समाज को उसी देवता की प्रजा के रूप में रहना पड़ता है। और देवता को उसी समाज के देव के रूप में रहना पड़ता है जौर इस प्रतिज्ञा के अनुसार यज्ञादि भी करने पड़ते हैं। ऐसी