________________ 60 - जादु उस मनुष्य को होती / ऐसा एक क्रम देखने में आता है और दूसरे अनेक क्रम से आभिचार कर्म हो सकता है। यह क्रम बतानेवाले वचनों के अर्थ करने में इतना ध्यान में रखना चाहिए कि जादुगर स्वयम् जो चोट मारता है उसी चोटकी पीड़ा उसके वशीभूत मनुष्य को होती है। आरंभ में इतन माने विना जादु माना नहीं जायेगा परन्तु सब जादु को मानते आए हैं और मानते हैं और सबजगह जादु मुख्य करके ऐसा ही होता है और उसके रूपांतर भी बहुत मिलते हैं / इस स्थान पर इसके उदाहरण देकर समझाने की आवश्यकता नहीं / इस लिये जादुका धर्म के साथ क्या संबंध है इस प्रश्न पर पुनः हम आजावेंगे / हम सामान्य रीति से कह सकेंगे कि ऐतिहासिक धर्मों में जादु और धर्म इन दो में भ्रम होने की संभावना ही नहीं रहती / सामाजिक देव पूजा की संस्था, समाज के मनुष्यों से अपने निजू कार्य सिद्ध करने के उपयोग में लाए जाते जादु से बिलकुल भिन्न ही हैं। ऐसा भेद बुद्धिपूर्वक डाला गया परन्तु व्यवहारमें ऐसा भेद दिखाई देता है / जो मनुष्य जादुका उपयोग करता है और जिस पर उसका उपयोग किया जाता है उन दोनों मनुष्यों को इतना ज्ञान होता है। जादु का उपयोग ऐसे कार्यों में होता है जैसे कि सहायता करने में जिस में समाज के देवताओं को प्रार्थना न की जासके कारण कि ऐसे कार्य सामाजिक हित विरोधि होते हैं और समाज उनको हानिकारक समझता है। जब समाज के किसी