________________ यज्ञ. पड़ता है। जिस प्रकार पच्छीमार पक्षी को पकड़ता है उसी तरह ब्राह्मण इन्द्र को पकड़ता है। देवता रूपी चक्र को किस प्रकार से फिराना वह यह ब्राह्मण जानता है।" / पुनः मंत्रों में भी ऐसी कल्पना की गई है कि देवता बलिदान लेने के लिए यज्ञ में प्रत्यक्ष हाज़र होते हैं और भक्ष्य तथा पेय पदार्थों के बलिदान से वह बलिष्ठ होते हैं। " जैसे बैल वर्षा के लिए विकल होता है वैसे ही इन्द्र सोमरस के लिए तड़फता है" इन उद्धत वाक्यों से हम देख सकते हैं कि यज्ञ क्रिया का गौरव ब्राह्मणों ने इतना बढ़ा दिया और यज्ञ क्रिया ही देवताओं की उत्पत्ति का आदि कारण है तथा इन क्रियाओं पर ही उन के अस्तित्वका आधार है ऐसा उन्होंने उपदेश किया है। " यज्ञमें से जगत् की उत्पत्ति हुई है और देवता भी यज्ञ द्वारा ही उत्पन्न हुए हैं " स्वर्ग से यज्ञ समाप्त हुआ है और स्वर्ग का यज सब लौकिक यज्ञों का आदर्श रूप माना गया है इस प्रकार ब्राह्मण धर्म में यज्ञ को सब का आदि तथा अंत माना गया है। यह यज्ञ ब्राह्मणों से ही कराए जा सकते हैं। ब्राह्मण धर्म की तरह दूसरे किसी धर्म में ईश्वर के समक्ष पहुंचने का साधन रूप यज्ञ क्रिया को इतना गौरव नहीं