________________ तुलनात्मक धर्मविचार. ज्ञाति के लिए वर्ण शब्द वर्ता जाता है / वर्ण अर्थात् रंग / रंग अर्थात् हिंदुस्थान पर चढ़ाई करने वाले आर्यों का तथा इन आर्यों से जीते हुए भारत के मूल रहवासियों के शरीरों में समाया हुआ रंग भेद / जीती हुई प्रजा शूद्र रूप में मान कर लकड़ी फाड़ने वाले तथा पानी भरनेवालों की दशा में रखे हुए आर्य प्रजा के परस्पर भेद बताने में 'वर्ण' शब्द लिया जाने से फिर इस का उपयोग विजयी प्रजा में भिन्न भिन्न धंधे रोज़गार करने वाले भेद दर्शाने के लिए बन गया अर्थात् कारीगर वर्ग वैश्यों का और राजसत्ताधारी वर्ग अर्थात् क्षत्रियों का तथा पुरोहित वर्ग ब्राह्मणों का परस्पर भेद भी वर्ण शब्द से ही दर्शित हुए। ऐसी वर्ण व्यवस्था ही ब्राह्मण जाति के उन्नति का कारण हुई। हम ऊपर जैसे बता चुके हैं वैसे जब पुरोहित वर्ग के प्राबल्य के कारण स्तुति अथवा यज्ञ को साधन रूप नहीं मानने से साध्य वस्तु के रूप में ही माना गया तब देवताओं का महत्व बिलकुल कम हो गया और वह पुरोहित के ही आधीन हो गया / पुरोहितों की देवता के प्रति ऐसी भावना वेद मंत्रों से प्रतीत हो जाती है। . " जिस प्रकार एक शिकारी अपने शिकार के पीछे भागता है उसी प्रकार यज्ञ करने वाला ब्रामण इन्द्र के पीछे