________________ प्रस्तावना. दूसरे जीवन में अर्थात् मृत्यु के पश्चात् मनुष्यों का अपने देवों के साथ कैसा संबंध होता है, इस विषय में प्रथम प्राचीन मिसर और ईरान का ध्यान आकर्षित हुआ। पीछे बुद्ध के उपदेश में तो नहीं परन्तु बौद्ध धर्म के चैतन्यमय और आनन्दमय जीवन को निर्वाण कहने में आया और इस्लाम तथा ईसाई धर्मों में दूसरे जीवन को भिन्नभिन्न कल्पित किया गया है और इस संबंध में यह कल्पनाएं महत्व का काम करती हैं। दुनियां के सब धम्मों में प्रथम से ही मनुष्यों का अपने देवताओं के साथ संबंध को समाज के अपने देवताओं के साथ संबंध की तरह मानने में आया है / देवता समाज की रक्षा करते हैं और समाज की सहायता करते हैं और समाज देवताओं को पूजता है। जापानी प्रजा और यहूदी जैसी प्रजाएं जो ऐसा बताती हैं कि यह संबंध प्रतिज्ञापत्र के आधार पर उत्पन्न हुआ है, उन में भी ऐसा विश्वास है कि प्रजा तथा देव अथवा देवताओं के मध्य में जो प्रतिज्ञा हुई है, उस से देवताओं की समाज की अमुक व्यक्ति के साथ स्वतंत्र संबंध नहीं होता / वास्तविक रीति से उस समय यह व्यक्ति का नहीं परन्तु समाज का कार्य था अर्थात् धर्म प्रजा का था किसी खास मनुष्य का नहीं। इस प्रकार धर्म संबंधी समाज से दिया हुआ व्यक्ति को गौण स्थान जैसा कि राजकीय विषयों