________________ तुलनात्मक धर्मविचार. . 31 नीति का प्रथम दर्शन हमको समाज की रीतियों में होता है / परन्तु आरंभ में रूढ़िद्वारा बहुतसी बातों को माना जाता है और उसको नीति नियमानुसार पीछे निकाल दिया जाता है अथवा तो उसी नियम से फिर निषेध किया जाता है। समाज की रूढ़ि का तथा प्रचलित नीति के टूटने को, आफत में बचाने वा आफत को रोकने के लिए समाज जिन देवताओं का आश्रय लेता उस देवता के अपराध का स्वरूप दिया जाता। इस लिए नीति के विषय में केवल ऐसे अपराध और अतिक्रमण न करना ऐसी देवताओं की इच्छा होती है ऐसा मानने में आता। इसी कारण से धर्म और नीति के प्राचीन इतिहास में भय को मुख्य स्थान दिया गया है परन्तु यह भय तो 'ईश्वरीय भय' होने से उसी से 'विवेकबुद्धि का आरंभ' होता है। ऐसा होने पर उस भय में से मुक्त होने का मार्ग ढूंडा जाता और ब्राह्मण धर्म में तो इस से आगे बढ़ कर जिस से मनुष्य देवताओं के वश कर सके ऐसी यज्ञ क्रियाओं का मार्ग ढूंड निकाला है। यूनान में देवताओं को मनुष्य प्रकृति का मानने से वहां भय का स्थान रह गया पर ऐसे विश्वास से देवताओं के प्रति पूज्य बुद्धि स्थिर रखने का काम अधिक अधिक मुष्किल होता गया /