________________ यज्ञ. देखने में आने से, पीछे पैदा हुए अन्नमय यज्ञों के अनुसार इनका समझाना ठीक नहीं माना जायगा / सब जगह पशु यज्ञों के साथ बलि भक्षण की तथा भोजन समारंभ की क्रियाएं लगाई जाती हैं और यह क्रियाएं धान्य देवताओं की पूजा शुरु होने से पूर्व समाज में सर्व मान्य हो चुकी होनी चाहिये / धान्य देवता तथा मकई माताओं की पूजा के अनुसार पशुपूजा में भी पशुजाति की प्रत्येक व्यक्ति में समान रीति से देवताओं का आविर्भाव मानने में आया हुआ होगा ऐसी कल्पना हम कर सकते हैं। प्राचीन काल में वृष जाति की प्रत्येक व्यक्ति को वृष इस नाम से सबका समावेश होने से उस जाति की प्रत्येक व्यक्ति को वृष-देवता अथवा वत्स देवता मानकर किसी भी व्यक्ति में वृष देवता की पूजा की जाती होगी / फिर जिस प्रकार से धान्य यज्ञों में बलिदान रूप में उत्पन्न हुए पौदों का उपयोग किया जाता था उसी प्रकार पशु यज्ञों में भी पाले हुए पशु बलिदान के उपयोग मे लाएजाने से हमको यह मानने के सबल कारण मिल जाते हैं कि जिन देवताओं को पशुओं की बलि दी जाती है वह आरंभ में पशु देवता ही थे और पूले मकई पूरी आटे के पुतलों की तरह पशुओं को ही बलिदान रूप तथा देवता रूप मानने में आते थे। इस के अतिरिक्त द्यौः-देवता, सूर्य चन्द्र तारा इत्यादि अन्य देवता भी अपने दृष्टिगत होते हैं और वह भी पशु देवता