________________ तुलनात्मक धर्मविचार में भी अति तीव्र स्वदेशाभिमान की लागणी से स्थान दिया हुआ देखने में आता है वैसा-याहुदिओं और पीछे के समय के ग्रीक लोगों जैसी छोटी जातिओं में बहुत आसानी से निभ सका, परन्तु बड़ी जातिओं में निभ नहीं सका। बहुत करके इसी कारण के लिए जिन में राजकीय मंडल को पीछे से मिला लिया गया है, ऐसा प्राचीन इजिप्ट के साम्राज्य में अपना अस्तित्व बनाए रखने के उपरांत मनुष्यों को दूसरी बातों पर भी विचार करने का अवसर मिला था और इस से उन्हों ने अपने वर्तमान जीवन को ही नहीं परन्तु भावी जीवन का भी विचार किया था / वर्तमान जीवन को मानते और अपने भावी जीवन के वैभव का आधार वर्तमान जीवन के वर्ताव पर ही है ऐसा मानने पर भी उनको भावी जीवन अच्छा होगा ऐसा निश्चय था। ईरान में द्वंद्ववाद अनुसार पवित्र और दुष्ट तत्वों के विरोध की कल्पना होने पर भी ऐसे प्रकार के शुभाशा की पुष्टि की गई थी कारण कि ईरान के लोग ऐसा मानते थे कि वह अन्त में विजय पाने वाले आरमझद के अनुयायी होने से उनका भावी जीवन सुखरूप होगा और दूसरे सब मनुष्य अहिमान के अनुयायी होने से अन्त में वह जल कर भस्म होनेवाली अमि की ज्वालाओं के भोग होगें। समग्र रूप में इस विषय में मुसलमानों का भी मत ऐसा ही है। इस प्रकार के शुभाशावाद में विशेष यह देखने में आता है कि उस में ऊपर निर्दिष्टानुसार वैसे मनुष्य अपने को स्वर्ग सुख प्राप्त होगा