Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 20
________________ चित्र-संभूति--आत्मघात से बच कर मुनि बने चाण्डाल के भू-घर में रह कर दोनों लड़को को विविध प्रकार की विद्या सिखाने लगा। चाण्डालपत्नी उसके भोजनादि की व्यवस्था करती थी । निकट सम्बंध से उनमें स्नेह बढ़ा और चाण्डालिनी के साथ नमूची व्यभिचार करने लगा। पाप का घड़ा फूटा और नमूची की कृतघ्नता, विश्वास-घातकता एवं अधमता, चाण्डाल के सामने प्रकट हो गई, चाण्डाल ने नमूची को मारने का संकल्प किया। यह बात दोनों पुत्रों को ज्ञात हुई । उन्होंने गुरु को सावधान कर के गुपचुप चले जाने का निवेदन किया । नमूची उसी समय वहाँ से निकल भागा और चलते-चलते हस्तिनापुर पहुँचा। उस समय हस्तिनापुर चक्रवर्ती महाराजा सनत्कुमार की राजधानी थी । नमूची वहाँ का प्रधानमन्त्री बन गया। चित्र-संभूति आत्मघात से बच कर मुनि बने चित्र-संभूति यौवनवय को प्राप्त हुए। वे गीत-वादिन्त्र एवं नाट्य-कला में अत्यन्त प्रवीण थे। उनका संगीत मनुष्यों को मोहित करने में समर्थ था । वे मृदंग और वीणा हाथ में ले कर, ज्योंहि तान मिला कर गाते और उनकी स्वर-लहरी वायुमण्डल में गुंजती हुई लोगों को सुनाई देती, त्योंहि लोग अपना कामधन्धा छोड़ कर उनके पास दौड़े आते और मन्त्रमुग्ध हो कर सुनते रहते। मदनोत्सव के दिन थे। वाराणसी के नागरिक, नगर के बाहर उद्यान में एकत्रित हो कर भिन्न-भिन्न टोलियों में राग-रंग में मस्त हो रहे थे। चित्र-संभूति बन्धु भी अपनी स्वर-लहरी से वातावरण को अत्यन्त मोहक बनाते हुए उधर निकले । उनके संगीत का राग कर्णगोचर होते ही लोग अपना राग-रंग छोड़ कर उनके पास पहुँचे और तल्लीनतापूर्वक सुनने लगे। मदनोत्सव के कार्यक्रम में बाधा उत्पन्न हुई देख कर अनुचर ने नरेश से निवेदन किया-"दो चाण्डाल-युवकों ने अपनी संगीत-कला से जनता को आकर्षित कर के सभी को मलिन = अस्पयं बना दिया और उसी से उत्सव में बाधा उत्पन्न हुई।" राजा ने तत्काल नगर-रक्षक को आज्ञा दी-"इन दोनों चाण्डालयुवकों को नगर से बाहर निकाल दो और उन्हें नगर में पुन: प्रवेश करने से रोको।" नगर रक्षक ने उन्हें राजाज्ञा सुना कर नगर की सीमा से बाहर कर दिया। वे अन्यत्र चले गये। कालान्तर में कौमुदी उत्सव के प्रसंग पर वे अपने को नहीं रोक सके और वाराणसी मेंर' नाज्ञा का उल्लंघन कर के आ पहुँचे। वे अपगण्ठन (बुरके) में अपने को छुपाये हुए नारी में फिरने लगे । वहाँ होते हुए संगीत ने उन्हें उत्साहित किया और वे भी उस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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