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एवं अरहंत, णमोकार मंत्र का प्राचीन उल्लेख, चारुदत्त की कथा, रत्नत्रयरूप त्रिशूल, उत्तम का अर्थ, प्रशस्त राग, जिनभक्ति, नवलब्धियाँ, भोगोपभोग का रहस्य, अनन्त शक्ति का हेतु, गणधर क बिना भी दिव्य-ध्वनि, भरत चक्रवर्ती द्वारा व्रतग्रहण, वृषभसेन गणधर, ब्राह्मी एवं श्रुतकीर्ति, प्रियव्रता, अनंतवीर्य का सर्व प्रथम मोक्ष, भरत का अपूर्व भाग्य, द्वादशांग श्रुत की रचना, दृष्टिवाद का अंग प्रथमानुयोग, आत्मप्रवाद पूर्व, विद्यानुवाद का प्रमेय, दिव्यध्वनि, समवशरण का विस्तार, समवशरण के विहार के स्थान, समवशरण में प्रभु का आसन, विविध स्वप्न दर्शन, योगनिरोधकाल, समुद्घात, आत्मा की लोक व्यापकता, अंतिम शुक्ल ध्यान, सिद्ध अमुक्त भी है।
निर्वाण-कल्यारणक
२६०-३१५ सिद्धालप का स्वरूप, सिद्धों की अवगाहना, ब्रह्मलोक, सिद्ध का अर्थ, सिद्धालय में निगोदिया का सद्भाव, सिद्धों द्वारा कल्याण, पुनरागमन का अभाव, परम समाधि में निमग्नता, साम्यता, अद्वैत अवस्था, भरत का मोह, समाधिमरण शोक का हेतु नहीं, शरीर का अंतिम संस्कार, अग्नित्रय की स्थापना, अंत्य-इष्टि का रहस्य, निर्वाण स्थान के चिन्ह, निर्वाणभूमि का महत्व, प्राचार्य शांतिसागर महाराज का अनुभव, निर्वाण और मृत्यु का भेद, निर्वाण अवस्था, सुख की कल्पना, सिद्ध प्रतिमा, निर्वाण पद और दिगम्बरत्व ।
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