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प्रस्तावना
तीर्थंकर
तीर्थ का स्वरूप, तीर्थंकर शब्द का प्रयोग, साधन रूप सोलह भावनाएँ, तीर्थंकर प्रकृति के बंधक, भिन्न दृष्टि, सम्यग्दर्शन तथा दर्शनविशुद्धि भावना में वेद, पंच कल्याणक वाले तीर्थंकर, तीर्थंकर भक्ति ।
गर्म-कल्याणक
अनुक्रम
जन्मपुरी का सौन्दर्य, रत्नवृष्टि, सुराङ्गनाओं द्वारा माता की सेवा, अयोध्या का सौभाग्य, स्वप्नदर्शन, देवियों का कार्य, गर्भस्थ प्रभु का वर्णेन ।
जन्म-कल्याणक
पुण्य वातावरण, ऐरावत, मेरु पर पहुँचना, मेरु वर्णन, पांडुक शिला, जन्माभिषेक, तुलबल, अभिषेक की लोकोत्तरता, गन्धोदक की पूज्यता, भगवान के अलंकार, प्रभु का जन्मपुरी में आगमन, माता-पिता का प्रानन्द, माता-पिता की पूजा का भाव, पिता मेरु पर क्यों नहीं गये, जन्मपुरी में उत्सव, भगवान के जीवन की लोकोत्तरता, तीर्थंकरों में समानता का कारण, अतिशय दवेत रक्त, शुभ लक्षण, अपूर्व प्राध्यात्मिक प्रभाव, तीर्थकर के चिन्ह, कुमार अवस्था, प्रभु की विशेषता, इन्द्र का मनोगत, प्रभु का तारुण्य, पंच बालयति तीर्थंकर, भरत जन्म, बाहुबली, आदिनाथ प्रभु का शिक्षा - प्रेम, जिन मंदिर का निर्माण, वर्ण-व्यवस्था, राज्याभिषेक, शासन पद्धति, इन्द्र की चिन्ता |
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