________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 91 प्रत्यक्षानुपलंभाभ्यां न तावत्तत्प्रसाधनम् / तयोः सन्निहितार्थत्वात् त्रिकालागोचरत्वतः // 154 // कारणानुपलंभाच्चेत्कार्यकारणतानुमा। व्यापकानुपलंभाच्च व्याप्यव्यापकतानुमा // 155 // तद्व्याप्तिसिद्धिरप्यन्यानुमानादिति न स्थितिः। परस्परमपि व्याप्तिसिद्धावन्योन्यमाश्रयः॥१५६॥ योगिप्रत्यक्षतो व्याप्तिसिद्धिरित्यपि दुर्घटम्। सर्वत्रानुमितिज्ञानाभावात् सकलयोगिनः॥१५७॥ परार्थानुमितौ तस्य व्यापारोपि न युज्यते। अयोगिनः स्वयं व्याप्तिमजानान: जनान् प्रति // 158 // योगिनोपि प्रति व्यर्थः स्वस्वार्थानुमिताविव। समारोपविशेषस्याभावात् सर्वत्र योगिनाम् // 159 // प्रत्यक्ष और अनुपलम्भ से तो व्याप्ति का निर्दोष साधन करना नहीं बन सकता क्योंकि बौद्धों ने उन प्रत्यक्ष और अनुपलम्भों को अत्यन्त निकटवर्ती अर्थों को विषय करने वाला माना है। वे प्रत्यक्ष और अनुपलम्भ तीनों काल के साध्य या साधनों को विषय नहीं करते हैं। किन्तु व्याप्ति ज्ञान तो सर्वदेश और सर्वकाल के साध्य-साधनों को जानता है। यदि कारण के अनुपलम्भ से (कार्य के न दिखने पर) कार्यकारणभावसम्बन्ध का अनुमान किया जायेगा, और व्यापक के अनुपलम्भ से व्याप्य के नहीं दीखने पर व्याप्यव्यापकभाव सम्बन्ध का अनुमान कर लिया जायेगा, तब तो उस व्याप्ति को साधने वाले अनुमान की जनक व्याप्ति का साधन भी अन्य अनुमान से किया जायेगा। ... इस प्रकार कहीं भी स्थिति नहीं होगी। (अनुमान से व्याप्ति को जानने में अनवस्था दोष प्रगट है)। प्रकृत अनुमान से उस व्याप्ति को जानने वाले अनुमान की व्याप्ति सध जायेगी और उस अनुमान से प्रकृत अनुमान की व्याप्ति सिद्ध होगी। इस प्रकार परस्पर में भी व्याप्ति को सिद्ध करने में अन्योन्याश्रय दोष भी आता है // 154-155-156 // ____ सबको जानने वाले योगियों के प्रत्यक्ष से व्याप्ति की सिद्धि होना कठिन है क्योंकि सकल भूत, भविष्यत्, वर्तमान के त्रिलोकवर्ती पदार्थों को युगपत् जानने वाले सकल योगी के सभी विषयों में प्रत्यक्षज्ञान होता है। उनके अनुमान ज्ञान का अभाव है। इसलिए स्वयं व्याप्ति को नहीं जानने वाले, अयोगी अल्प ज्ञानी, मनुष्यों के प्रति परार्थानुमान कराने में भी उस योगिप्रत्यक्ष का व्याप्ति को जानने वाला व्यापार उपयोगी नहीं होता है, और सर्वज्ञ योगियों के प्रति तो स्वयं अपने प्रत्यक्ष से जानी हुई व्याप्ति के ज्ञान का व्यापार करना व्यर्थ ही है। जैसे कि स्वार्थानुमान करने में निकटवर्ती साध्य और साधन की प्रत्यक्ष से जानी हुई व्याप्ति का ज्ञान व्यर्थ होगा। योगियों को सम्पूर्ण त्रिलोक त्रिकालवर्ती पदार्थों में अज्ञान, संशय आदि विशेष समारोपों का अभाव है। (किसी कारण से उत्पन्न समारोप को दूर करने के लिए अनुमान ज्ञान सर्वत्र नहीं हो सकता) // 157-158-159 / /