________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 265 मतिज्ञानविशेषाणामुपलक्षणता स्थितं। तेन सर्वं मतिज्ञानं सिद्धमाभिनिबोधिकम् // 394 // तदिंद्रियानिद्रियनिमित्तम् // 14 // मतिविज्ञानस्याभ्यंतरत्वात्तन्निमित्तं मतिज्ञानावरणवीर्यांतरायक्षयोपशमलक्षणं प्रसिद्धमेव वामुनानुमानादेस्तद्भावायोगादतः किमर्थमिदमुच्यते सूत्रमित्याशंकायामाह;तस्य बाह्यनिमित्तोपदर्शनायेदमुच्यते। तदित्यादिवचः सूत्रकारेणान्यमतच्छिदे // 1 // कस्य पुनस्तच्छब्देन परामर्शो यस्य बाह्यनिमित्तोपदर्शनार्थं तदित्यादिसूत्रमभिधीयत इति तावदाह; स्फूर्ति, प्रेक्षा, प्रज्ञा आदि का संग्रह कर लिया जाता है। अत: इन्द्रिय, अनिन्द्रियजन्य सर्व ही मतिज्ञान आभिनिबोधिक सिद्ध हो जाते हैं॥३९४।। यद्यपि इन अवान्तर भेदों में सूक्ष्म भेद है, परन्तु सभी का मुख्य कारण मतिज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम है। इसलिए भेद रूप नहीं है। यहाँ तक मतिज्ञान के सम्पूर्ण अनर्थान्तर विशेषों का वर्णन कर दिया गया है। अब मतिज्ञान के निमित्त कारणों का निरूपण करने के लिए कहते हैं - वह मतिज्ञान इन्द्रिय, स्पर्शन आदि पाँच तथा अनिन्द्रिय मन रूप निमित्तों से उत्पन्न होता है॥१४॥ शंका : मतिज्ञान के विज्ञान का अभ्यन्तर निमित्त कारण मतिज्ञानावरण कर्म और वीर्यान्तराय कर्म का क्षयोपशम प्रसिद्ध ही है। तथा अनुमान, प्रत्यभिज्ञान आदि मतिज्ञानों को इन्द्रिय, अनिन्द्रिय निमित्तपने के सम्बन्ध का अयोग है। अर्थात अनमान के कारण हेतज्ञान. व्याप्तिस्मरण. तर्कज्ञान हैं। प्रत्यभिज्ञान के कारण दर्शन और स्मरण हैं। स्मृति का कारण धारणा ज्ञान है। तर्क के कारण उपलम्भ और अनुपलम्भ हैं। इन्द्रिय और अनिन्द्रिय तो अनुमान, स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क इन मतिज्ञानों के कारण नहीं हैं। धारणा का भी अव्यवहित कारण अवायज्ञान है। अवाय का अव्यवहित कारण ईहा मतिज्ञान है। ईहा का निमित्त या उपादान अवग्रह ज्ञान है। अवग्रह का अव्यवहित पूर्ववर्ती दर्शन उपयोग है। अंतरंग कारण तो मतिज्ञानावरण का क्षयोपशम सभी मतिज्ञानों में उपयोगी है अत: इन्द्रिय और अनिन्द्रिय को मतिज्ञान का निमित्तकारण कहने वाले इस सूत्र की क्या आवश्यकता है? - समाधान : ऐसी आशंका होने पर आचार्य समाधान करते हैं कि उस मतिज्ञान के बहिरंग निमित्तों का प्रदर्शन कराने के लिए यह सूत्र कहा गया है। अर्थात्-अन्यवादियों के द्वारा ज्ञान के जो निमित्त कारण मन और इन्द्रियाँ मानी जाती हैं, वे बहिरंग निमित्त हैं तथा अन्यमतों का व्यवच्छेद करने के लिए सूत्रकार द्वारा तत् इन्द्रिय अनिन्द्रिय आदि वचन कहे गये हैं॥१॥ अर्थात् जो सन्निकर्ष, इन्द्रियवृत्ति, कारकसाकल्य आदि को मतिज्ञान का निमित्त मानते हैं उनका खण्डन किया गया है कि मतिज्ञान की उत्पत्ति का कारण इन्द्रिय और मन है, सन्निकर्ष आदि नहीं हैं।