Book Title: Tattvarthashloakvartikalankar Part 03
Author(s): Suparshvamati Mataji
Publisher: Suparshvamati Mataji

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Page 399
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 394 ब्रह्मणो न व्यवस्थानमक्षज्ञानात् कुतश्चन / स्वप्नादाविव मिथ्यात्वात्तस्य साकल्यतः स्वयम् // 17 // नानुमानात्ततोर्थानां प्रतीतेर्दुर्लभत्वतः। परप्रसिद्धिरप्यस्य प्रसिद्धा नाप्रमाणिका // 18 // . स्वतः संवेदनासिद्धिः क्षणिकानंशवित्तिवत् / न परब्रह्मणो नापि सा युक्ता साधनाद्विना // 19 // आगमादेव तत्सिद्धौ भेदसिद्धिस्तथा न किम्। निर्बाधादेव चेत्तत्त्वं न प्रमाणांतरादृते // 10 // तदागमस्य निश्चेतुं शक्यं जातु परीक्षकैः। न चागमस्ततो भिन्नः समस्ति परमार्थतः // 101 // तद्विवर्तस्त्वविद्यात्मा तस्य प्रज्ञापकः कथं / न चाविनिश्चिते तत्त्वे फेनबुद्दवद्भिदा // 102 // स्पार्शन प्रत्यक्ष, चाक्षुष प्रत्यक्ष आदि किसी भी इन्द्रियजन्य प्रत्यक्ष के द्वारा निरंश शब्द ब्रह्म की सिद्धि नहीं होती है क्योंकि स्वप्न ज्ञान के समान इन्द्रियजन्य ज्ञान को स्वयं शब्दाद्वैतवादियों ने पूर्ण रूप से मिथ्या स्वीकार किया है।।१७।। - _ अनुमान ज्ञान (प्रमाण) से भी शब्द ब्रह्म की सिद्धि नहीं हो सकती, क्योंकि प्रतिवादियों ने कहा है कि “अनुमान से अर्थों की प्रतीति होना दुर्लभ है। तथा शब्दाद्वैतवादियों के यहाँ अनुमान प्रमाण की प्रसिद्धि नहीं है और उसको अप्रमाण भी माना है अत: उस अप्रामाणिक ज्ञान से परम ब्रह्म की सिद्धि नहीं हो सकती है॥९८॥ ___ बौद्धों के द्वारा स्वीकृत क्षणिक, निरंश ज्ञान की, जैसे स्वसम्वेदन प्रत्यक्ष से सिद्धि शब्दाद्वैतवादियों ने नहीं मानी है, उसी के समान नित्य, व्यापक, शब्द परमब्रह्म की भी स्वतः सम्वेदन प्रत्यक्ष से सिद्धि नहीं होती है, क्योंकि साधन के बिना ब्रह्म की सिद्धि युक्तियुक्त नहीं है॥१९॥ यदि आगम प्रमाण से शब्दब्रह्म की सिद्धि मानते हैं तब तो उस शब्दब्रह्म के समान आगम से शब्दब्रह्म के भेद की भी सिद्धि क्यों नहीं होगी? अपितु, अवश्य होगी। अर्थात् आगम में शब्द के भेद माने हैं-वह भी स्वीकार करना पड़ेगा तथा आगम प्रमाण से यदि शब्दब्रह्म की सिद्धि करते हो तो वह आगम भी अनुमान आदि प्रमाणों के बिना निर्बाध सिद्ध नहीं हो सकता। तथा शब्दब्रह्म को निरंश सिद्ध करने वाले उस आगम का निर्बाधपना परीक्षकों के द्वारा तर्क अनुमान आदि प्रमाणों के बिना कभी भी निश्चय नहीं किया जा सकता है तथा शब्दाद्वैतवादियों के यहाँ परम ब्रह्म से भिन्न दूसरा कोई परमार्थभूत आगम स्वीकार नहीं किया है अतः आगम से भी शब्दब्रह्म की सिद्धि नहीं होती है // 100-101 // अर्थात् ब्रह्म और आगम में कथंचित् भेद मानने पर ही गम्य और गमकपना सिद्ध हो सकता है - अन्यथा नहीं। तथा अविद्यात्मक उस परम ब्रह्म की पर्याय भी शब्दब्रह्म की ज्ञापक कैसे हो सकती है? अर्थात् अवस्तुभूत अविद्या से वस्तुभूत तत्त्व की सिद्धि नहीं हो सकती, जैसे कल्पित मोदक से जठराग्नि शांत नहीं हो सकती और काष्ठ निर्मित बादाम के खाने से मस्तक में तरी नहीं आ सकती। जब तक भेदयुक्त अनुमान प्रमाण से निर्बाध आगम विशेष रूप से निश्चित नहीं होता है, तब तक अद्वैत शब्दब्रह्म की सिद्धि नहीं हो सकती। अर्थात् - अनुमान प्रमाण के बिना तत्त्व का निश्चय नहीं हो सकता।

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