Book Title: Tattvarthashloakvartikalankar Part 03
Author(s): Suparshvamati Mataji
Publisher: Suparshvamati Mataji

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Page 416
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक *411 12. प्राणावायपूर्व - इसमें अष्टांग वैद्यविद्या, गारुड़विद्या और मन्त्र-तन्त्र आदि का वर्णन है। इसके पदों की संख्या तेरह करोड़ है। 13. क्रियाविशालपूर्व - इसमें छन्द, अलंकार और व्याकरण की कला का वर्णन है। इसके पदों की संख्या नौ करोड़ है। 14. लोकबिन्दुसार - इसमें निर्वाण के सुख का वर्णन है। इसके पदों की संख्या साढ़े बारह करोड़ है। इस प्रकार चौदह पूर्व का वर्णन किया गया है। प्रथम पूर्व में दस, द्वितीय में चौदह, तृतीय में आठ, चौथे में अठारह, पाँचवें में बारह, छठे में बारह, सातवें में सोलह, आठवें में बीस, नौवें में तीस, दसवें में पन्द्रह, ग्यारहवें में दस, बारहवें में दस, तेरहवें में दस और चौदहवें पूर्व में दस वस्तुएँ हैं। सब वस्तुओं की संख्या एक सौ पञ्चानवे है। एक-एक वस्तु में बीस-बीस प्राभृत होते हैं। सब प्राभृतों की संख्या तीन हजार नौ सौ है। दूसरे पूर्व में जो चौदह वस्तुएँ हैं, उनके नाम इस प्रकार हैं - पूर्वान्त, परान्त, ध्रुव, अध्रुव, च्यवनलब्धि, अध्रुवसंप्रणिधि, अर्थ, भौमावयाद्य (?), सर्वार्थ, कल्पनीय ज्ञान, अतीतकाल, अनागत काल, सिद्धि और उपाध्य (?) / च्यवनलब्धि नामक वस्तु में 20 प्राभृतक हैं। उन प्राभृतों में जो चौथा प्राभृत है उसके 24 अनुयोगद्वार हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं। कृति, वेदना, स्पर्शन, कर्म, प्रकृति, बंधन, निबंधन, प्रक्रम, अनुपक्रम, अभ्युदय, मोक्ष, संक्रम, लेश्या, लेश्याकर्म, लेश्यापरिणाम, साता-असाता, दीर्घ-हस्व, भवधारणीय, पुद्गलत्व, निधत्त-अनिधत्त, सनिकाचित, अनिकाचित, कर्म-स्थिति और पश्चिमस्कन्ध / यहाँ अल्पबहुत्व पच्चीसवाँ अधिकार होता है, किन्तु चौबीस ही अनुयोगों में अल्पबहुत्व साधारण अर्थात् समान रूप से है, इसलिए वह भी चौबीसवाँ अधिकार ही कहा जाता है (अल्पबहुत्व नाम का पृथक् अधिकार नहीं है)। (5) चूलिका - चूलिका के पाँच भेद हैं - 1. जलगता चूलिका - इसमें जल को रोकने, जल को बरसाने आदि के मन्त्र-तन्त्रों का वर्णन है। इसके पदों की संख्या दो करोड नौ लाख नवासी हजार दो सौ है। 2. स्थलगता चूलिका - इसमें थोड़े ही समय में अनेक योजन गमन करने के मन्त्र-तन्त्रों का वर्णन है। इसके पद जलगता के समान है। 3. मायागता चूलिका - इसमें इन्द्रजाल आदि माया के उत्पादक मन्त्र-तन्त्रों का वर्णन है। इसके पद दो करोड़ नौ लाख नवासी हजार दो सौ हैं। 4. आकाशगता चूलिका - इसमें आकाश में गमन के कारणभूत मन्त्र-तन्त्रों का वर्णन है। इसके पद दो करोड़ नौ लाख नवासी हजार दो सौ हैं। 5. रूपगता चूलिका - सिंह, व्याघ्र, गज, उरग, नर, सुर आदि के रूपों (वेष) को धारण कराने वाले मन्त्र-तन्त्रों का वर्णन है। इन सबके पदों की संख्या जलगता चूलिका के पदों की संख्या के बराबर ही है। इस प्रकार बारहवें दृष्टिवाद अंग के परिकर्म आदि पाँच भेदों का वर्णन हुआ। यहाँ जो पदों के द्वारा संख्या कही गई है, उसे ग्रन्थ की पद-संख्या कहते हैं; अर्थात् ग्रन्थों की पदसंख्या का कथन करते हैं। इक्यावन करोड़ आठ लाख चौरासी हजार छ: सौ साढ़े इक्कीस अनुष्टुप, एक पद में होते हैं। इस प्रकार एक पद में ग्रन्थों की संख्या 510884621 - है। इस प्रकार पदग्रन्थ हैं तथा उनके अक्षर 16 हैं। अंगपूर्व श्रुत के एक सौ बारह करोड़ तेरासी लाख अट्ठावन हजार पाँच पद होते हैं।

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